पूर्वाचल पर कस रहा हेपेटाइटिस का शिकंजा
जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
पूर्वाचल में लीवर की बीमारी हेपेटाइटिस अपनी जड़ें जमाती जा रही है। जानलेवा हेपेटाइटिस बी व सी के रोगियों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। गोरखपुर मेडिकल कालेज,निजी अस्पतालों में पहुंचने वाले मरीज हों या फिर पैथालॉजी सेंटरों में जांच कराने वालों की भीड़, हर जगह हेपेटाइटिस बी के मरीजों की संख्या बढ़ रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हेपेटाइटिस बी एड्स से भी अधिक संक्रामक है। खास बात यह भी है कि जिन वजहों से एड्स फैलता है उन्हीं कारणों से हेपेटाइटिस बी भी होता है। पूर्वाचल में मरीजों की तादाद देखें तो मेडिकल कालेज में रोजाना बड़ी संख्या में हेपेटाइटिस के मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। मेडिसिन के विभागाध्यक्ष व प्रोफेसर डा. महिम मित्तल के मुताबिक विभाग में आने वाले कुल मरीजों में आठ से दस फीसद हेपेटाइटिस के होते हैं। इनमें से तीन से चार फीसद हेपेटाइटिस बी के मरीज होते हैं।
पैथालॉजी सेंटरों के भी आंकड़े चौंकाने वाले हैं। पूर्वाचल में विभिन्न इलाकों से गोरखपुर के पैथालॉजी सेंटरों में करीब पांच से छह हजार लोग हेपेटाइटिस बी की जांच के लिए पहुंचते हैं।
वरिष्ठ पैथालॉजिस्ट डा. मंगलेश श्रीवास्तव के अनुसार सिर्फ उनकी पैथालॉजी में साल भर में करीब साठ मरीजों में हेपेटाइटिस बी की पुष्टि होती है। बड़े व छोटे सभी पैथालॉजी सेंटरों को मिला दिया जाए तो एक साल में छह से सात सौ लोगों में बीमारी की पुष्टि होती है।
जागरूकता की कमी से ज्यादातर लोगों को इसका पता बीमारी बिगड़ने के बाद या किसी दूसरे कारणों से रक्त की जांच होने पर चलता है। विशेषज्ञों के मुताबिक हेपेटाइटिस ए व ई दूषित भोजन व जल से होता है। थोड़ी सी सावधानी से इनसे बचा जा सकता है। इलाज भी आसान है, पर हेपेटाइटिस बी, सी व डी जानलेवा हैं।
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यह है वजह
हेपेटाइटिस बी के विषाणु रक्त के माध्यम से शरीर में पहुंच कर लीवर को नुकसान पहुंचाते हैं। क्रानिक हेपेटाइटिस बी व सी से संक्रमित व्यक्ति में काफी दिनों तक इसके लक्षण नहीं आते। लेकिन लीवर में पड़े बीमारी के वायरस कभी भी सक्रिय होकर क्षति पहुंचाना शुरू कर देते हैं। नतीजा होता है कि धीरे-धीरे व्यक्ति लीवर सिरोसिस का शिकार हो जाता है जो जानलेवा हो सकता है। --------------------
ऐसे बचें
-हेपेटाइटिस बी, सी व डी संक्रमित रक्त व असुरक्षित यौन सम्बन्ध से होता है। बचाव के लिये रक्त के इस्तेमाल से पहले रक्त या इसके अवयव की अच्छी तरह जांच की जानी चाहिए
- रक्त की जांच के लिये स्टरलाइज्ड तथा डिस्पोजल सिरिंज या निडिल ही प्रयोग किया जाना चाहिए
-दूसरे का सेफ्टी रेजर या टूथ ब्रश का इस्तेमाल न करें
-संक्रमित निडिल से टैटू बनवाने से भी इसका खतरा रहता है
-हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए अब टीके उपलब्ध