फूस की झोपड़ी में रहने को विवश जूडो का 'हीरो'
पासपोर्ट न मिलने के कारण वह 2015 में जापान नहीं जा सके फिर भी राजन ने हिम्मत नहीं हारी, 2016 में वियतनाम जाने वाली टीम उसका चयन हो गया।
गोंडा (शिव प्रसाद तिवारी)। किस्मत मौका देती है लेकिन मेहनत चौंका देती है। कुछ ऐसा ही एक खिलाड़ी ने किया। दिव्यांग होने के बावजूद कड़ी मेहनत के बल पर नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। गोवा में पहले गोल्ड जीता, फिर इसके बाद वियतनाम में कांस्य पदक। देश का नाम रोशन करने वाला जूडो का हीरो मुफलिसी के दौर में फूस की झोपड़ी में जिंदगी गुजार रहा है। सरकार की तरफ से खिलाड़ी को कोई मदद आज तक नहीं मिल सकी।
कर्नलगंज तहसील क्षेत्र के ग्राम हड़ियागाड़ा निवासी किसान हनोमान सिंह के घर में पांच अक्टूबर 1996 को बेटा पैदा हुआ था। राजन बताते हैं कि वह जन्म से ही दोनों आंखों से दृष्टिहीन थे। पढ़ाई के लिए पिता ने उसका नाम लखनऊ के स्पर्श राजकीय दृष्टिबाधित इंटर कॉलेज में लिखवा दिया था। स्कूल की तरफ से वह पढ़ाई के साथ जूडो खेलने लगे।
लखनऊ व नई दिल्ली में आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में अच्छे प्रदर्शन के बाद हाईस्कूल में पढ़ाई के दौरान 2014 में उन्हें गोवा में खेलने का मौका मिला। यहां उन्होंने पहली बार गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद उनका चयन जापान में आयोजित होने वाली दृष्टिहीन जूडो प्रतियोगिता के लिए हो गया।
पासपोर्ट न मिलने के कारण वह 2015 में जापान नहीं जा सके। फिर भी राजन ने हिम्मत नहीं हारी। 2016 में वियतनाम जाने वाली टीम उसका चयन हो गया। यहां भी कामयाबी ने राजन के पैर चूम लिए। कांस्य पदक लेकर जब वह घर लौटे तो परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
लेकिन जूडो में देश का नाम रोशन करने वाले राजन का परिवार गरीबी की मार झेल रहा है। बारिश के मौसम में रहने के लिए एक मकान तक नहीं है। पूरा परिवार फूस की झोपड़ी में जिंदगी गुजार रहा है।
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महासचिव ने दिया पैसा तब जा सका विदेश: राजन का कहना है कि गरीबी से विदेश में जाने का सपना उसका कभी पूरा नहीं होता लेकिन जूडो एसोसिएशन के महासचिव मनवर अंजर भगवान हो गए। विदेश जाने के लिए 40 हजार रुपये दिए और ड्रेस की भी व्यवस्था कराई। हड़ियागाड़ा के प्रधान प्रतिनिधि रमेश सिंह ने बताया कि ग्राम सभा स्तर से जो भी हो सकता है उसका लाभ दिलाया जाएगा। आवास के लिए प्रस्ताव दिया गया है।
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