बस्ते पर भारी कमीशन की 'बीमारी'
गोंडा :पांच साल की रश्मि के कंधे पर उसके वजन से दोगुना वजन के बस्ते का बोझ है। वह पसीने से तरबतर है।
गोंडा :पांच साल की रश्मि के कंधे पर उसके वजन से दोगुना वजन के बस्ते का बोझ है। वह पसीने से तरबतर है। स्कूल गेट पर खड़े होकर वह अपने अभिभावक का इंतजार कर रही है। दरअसल, उसके पापा अभी तक नहीं आए हैं। जैसे ही उसके पापा आए उसने अपना बस्ता उन्हें थमा दिया। यह हाल, हर स्कूल में देखने को मिल रहा है। भले ही बच्चों को बस्ते का बोझ कम करने के लिए कई बार दिशा निर्देश जारी किए गए लेकिन उसका पालन कही नहीं हो रहा है। कमीशन के चक्कर में स्कूल संचालक बस्ते का बोझ बढ़ाते जा रहे हैं, जिससे बच्चे पिस रहे हैं।
सरकारी व प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की शिक्षा का पाठ्यक्रम अलग-अलग है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के अधिकारियों की मानें तो कक्षा एक में पढने वाले बच्चों के लिए कलरव पुस्तिका है। इसी में सभी विषय है। कक्षा दो में कलरव व गिनतारा, कक्षा तीन में कलरव, गिनतारा व हमारा परिवेश, कक्षा चार में कलरव, गिनतारा, हमारा परिवेश व संस्कृत तथा कक्षा पांच में कलरव, गिनतारा, हमारा परिवेश, संस्कृत व परख नाम से पुस्तकें संचालित हो रही है। इसके साथ ही कक्षा एवं व दो के बच्चों को अभ्यास पुस्तिका भी दी जाती है। यह तो हुआ सरकारी स्कूलों का इंतजाम, इससे इतर प्राइवेट स्कूलों का हाल और भी खराब है। निजी स्कूलों में मनमानी का खेल चल रहा है। स्कूल संचालक प्रकाशकों से सांठगांठ करके एक-एक विषय की तीन से चार पुस्तकें चला रहे हैं। पुस्तकों के मकड़ जाल में बच्चे उलझे हुए हैं। कई स्कूल अपने यहां खुद ही दुकान खुलवाकर उसकी बिक्री कराते हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक स्कूल संचालक ने बताया कि दरअसल, यह सब कमीशन का खेल है। जो प्रकाशक जितना कमीशन देता है, उसी के हिसाब से पुस्तकें लगाई जाती हैं। यही नहीं, बुक सेलर्स का भी स्कूल से कमीशन फिक्स होता है, इसके बाद ही बुक सेलर्स को किताबों की लिस्ट दी जाती है। इन सबके बीच बच्चे जहां बस्ते के बोझ से परेशान है वहीं अभिभावक भी लाचार है। जिम्मेदार बेखबर है।
क्या है मानक
- केंद्रीय विद्यालय के प्रधानाचार्य केपी यादव के मुताबिक पहली व दूसरी कक्षा के बच्चों के बस्तों का वजन दो किलो से अधिक नहीं होना चाहिए। तीसरी व चौथी कक्षा के बच्चों के बस्तों का भार तीन किलो, पांचवी से सातवीं तक के बस्तों का बोझ चार किलो तक होना चाहिए। इससे ऊपर के बच्चों के बस्ते का भार 6 किलो तक होना चाहिए।
क्या कहते हैं अभिभावक
- मालवीय नगर के राजीव का कहना है कि यहां पर तो प्ले ग्रुप के बच्चे भी बैग लेकर स्कूल जाते हैं, जबकि ऐसे बच्चों को सिर्फ स्कूल में तौर तरीकों की जानकारी दी जाती है। यही नहीं, ऐसे स्कूल संचालक प्ले ग्रुप की पुस्तकें भी अपने यहां से ही अभिभावकों से खरीदवाते हैं। मनमाना रेट वसूलते हैं। पंतनगर के सुधीर का कहना है कि उनका बेटा एक कान्वेंट स्कूल में कक्षा चार में पढ़ रहा है, उसका पाठ्यक्रम इतना भारी है कि बच्चे परेशान हो जाते हैं। एक-एक विषय की कम से कम तीन पुस्तकें चलाई जा रही है। राहुल का कहना था कि बस्तों के बढ़ते बोझ की मुख्य वजह स्कूलों व प्रकाशकों के बीच कमीशन को लेकर होने वाली डील है। स्कूल प्रकाशकों को लाभ पहुंचाने के लिए किताबों का अतिरिक्त भार बढ़ा दे रहे हैं। सुजीत शुक्ला का कहना है कि अब तो प्रवेश के समय ही स्कूल संचालक अपने स्कूल की किताबों की बिक्री के लिए दुकानें खुलवा देते हैं। इससे भी वह सीधा फायदा उठाते हैं।
जिम्मेदार के बोल
- देवी पाटन मंडल के सहायक बेसिक शिक्षा निदेशक राजेश कुमार वर्मा ने बताया कि जो कोर्स निर्धारित है, उसी के हिसाब से स्कूलों में पढ़ाई होनी चाहिए। अगर कहीं पर इससे इतर पाठ्यक्रम बढ़ाया जा रहा है तो उसकी जानकारी की जाएगी। संबंधित जिलों के बीएसए से इस पर बात की जाएगी।