गैस के लिए जग रही जनता, सो रहे हाकिम
गोंडा : उपभोक्ताओं को घरेलू गैस मुहैया कराने का अधिकारी भले ही दावा क्यों न कर रहे हों, लेकिन एजेंसी
गोंडा : उपभोक्ताओं को घरेलू गैस मुहैया कराने का अधिकारी भले ही दावा क्यों न कर रहे हों, लेकिन एजेंसी संचालकों की मनमानी से उपभोक्ताओं को रसोई गैस नहीं मिल पा रही है। घंटों लाइन लगाने के बाद उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ रहा है। यही नहीं, जिन उपभोक्ताओं को रसोई गैस मिल भी रही है, उनसे निर्धारित दर से सात रुपये अधिक वसूल किए जा रहे हैं। उधर, सहालग के चलते रसोई गैस की कालाबाजारी चरम पर पहुंच गई है। एक हजार रुपए प्रति सिलेंडर की दर से रसोई गैस की कालाबाजारी की जा रही है। यह सिलेंडर कालाबाजारियों के पास कहां से पहुंच रहे हैं, जिला प्रशासन और संबंधित विभागों के अफसरों के पास यह जानने की फुर्सत ही नहीं है।
जिले में उपभोक्ताओं को घरेलू गैस मुहैया कराने के लिए 24 गैस एजेंसियां संचालित हैं। इन एजेंसियों से करीब डेढ़ लाख उपभोक्ताओं को घरेलू गैस का वितरण किया जाता है। लेकिन माह भर से इन एजेंसियों से उपभोक्ताओं को रसोई गैस के लिए चक्कर काटना पड़ रहा है। करीब चार हजार उपभोक्ता गैस एजेंसियों पर सुबह शाम पहुंच रहे है कि उन्हें रसोई गैस की आपूर्ति नहीं की गई। एजेंसी संचालक वितरण स्थल पर पहुंचकर लाइन लगाने की बात कहकर उपभोक्ताओं को टरका देते हैं। रसोई गैस के खातिर सुबह ही घर का अन्य कार्य छोड़कर उपभोक्ता लाइन लगाने के लिए चल देता है। जब वह वितरण स्थल पर पहुंचता है तो वहां लोड न आने की बात कही जाती है। जब तक लोड आता है तब तक पांच सौ से छह सौ तक उपभोक्ताओं की लाइन लग जाती है। एक ट्रक पर तीन सौ सिलेंडर का लोड बताया जाता है लेकिन मौके पर दो सौ से पौने तीन सौ ही सिलेंडर ट्रक में रहते हैं। तीन-चार सौ से अधिक उपभोक्ता धूप में घंटों खड़े होने के बावजूद बैरंग वापस लौटने को विवश हो जाते हैं। उन्हें दूसरे दिन आने की नसीहत दी जाती है।
उधर सहालग होने के कारण घरेलू गैस की कालाबाजारी चरम पर पहुंच गई है। एक-एक सिलेंडर का एक हजार रुपये लिए जा रहे हैं। इससे जरूरतमंद उपभोक्ताओं को घरेलू सिलेंडर नहीं मिल पा रहे हैं। पेट्रोलियम अधिकारी पहले कहते थे कि झांसी में गैस प्लांट की सफाई हो रही है। 10-12 दिन में स्थिति सामान्य हो जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जिम्मेदार अधिकारी एजेंसी संचालकों के साथ बैठककर रणनीति तो बनाते हैं, लेकिन उसे अमलीजामा नहीं पहना पाते हैं। यह स्थिति शहर के सभी एजेंसियों की है। अधिकारी यह भी देखना मुनासिब नहीं समझते हैं कि उपभोक्ताओं को गैस की आपूर्ति हो रही है या नहीं। वह अपनी कुर्सी पर बैठकर पूरा समय गुजार देते हैं। इससे उपभोक्ताओं की पीड़ा का अहसास उन्हें नहीं हो पाता है।