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उमा बनीं बेटियों की शिक्षा के लिए '¨सह'

गोंडा: करीब तीन साल पहले की बात है। प्राइमरी पाठशाला मुंडेरवा माफी में तैनाती के दौरान जब वह स्कूल म

By Edited By: Published: Sun, 21 Dec 2014 12:24 AM (IST)Updated: Sun, 21 Dec 2014 12:24 AM (IST)
उमा बनीं बेटियों की शिक्षा के लिए '¨सह'

गोंडा: करीब तीन साल पहले की बात है। प्राइमरी पाठशाला मुंडेरवा माफी में तैनाती के दौरान जब वह स्कूल में नामांकित एक बच्ची के सप्ताह भर से स्कूल न आने का कारण पता करने उसे घर पर पहुंची तो वहां पर उसकी मां ने बेटी को स्कूल भेजने से मना कर दिया। जिसके बाद लगातार 15 दिनों की भागदौड़ व रोजाना उसके घर जाकर न केवल बेटी को स्कूल तक पहुंचाया, बल्कि उस मजरे में रह रहीं एक दर्जन महिलाओं को भी निरक्षर से साक्षर बनाया। आज भी बालिका शिक्षा को एक नई मुहिम देने के लिए वह प्रयासरत हैं। न केवल वह स्कूल में पढ़ा रही हैं, अपितु स्कूल से आने के बाद घर पर बेटियों को नि:शुल्क शिक्षा दे रही हैं। वैसे तो उन्हें अब तक कई पुरस्कार मिल चुके हैं, उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।

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जी हां, परिषदीय स्कूल में सहायक अध्यापक के पद पर तैनात डॉ. उमा ¨सह पिछले 15 सालों से शिक्षा की एक अलख जगाने में लगी हुई है। शहर के राधाकुंड की रहने वाली डॉ. उमा ¨सह की तैनाती वर्ष 1999 में बतौर सहायक अध्यापक हुई। वैसे विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने बेटियों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने की पहल शुरू की थी, उस वक्त उन्होंने मोहल्ले में ही गरीब बेटियों को नि:शुल्क शिक्षा दी। सरकारी सेवा में आने के बाद उन्होंने शिक्षा को लेकर काफी प्रयास किए। सरकारी स्कूल में नामांकन के सापेक्ष शत प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित कराने के साथ ही उन्होंने गांवों में जाकर निरक्षर महिलाओं को भी साक्षर बनाने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने स्कूलों से निकलकर मजरों तक का रास्ता तय किया।

साथ ही साथ उन्होंने काव्य संग्रह रश्मि, उपन्यास एक उड़ान अभी बाकी है, बाल कहानी मेरे भी पंख है, उपन्यास कलयुग का वनवास सहित एक दर्जन पुस्तकें लिखी है। इसके अलावा कई अन्य पुस्तकें जल्द ही प्रकाशित होने वाली है। वह आज भी शिक्षा की अलख जगाने को लेकर प्रयत्नशील है। इन दिनों वह जिला कारागार में हर रविवार को बंद महिला कैदियों को योग के साथ ही शिक्षित करने का काम कर रही है। साथ ही वह शिशु गृह में रह रहे अनाथ बच्चों को भी पढ़ा रही है। वैसे अब तक उन्हें कई पुरस्कार मिल चुके हैं। वह स्काउट मास्टर की भी जिम्मेदारी भी निभा चुकी है।

राष्ट्रपति तक ने दी शाबाशी

- डॉ. उमा ¨सह की साहित्यिक रचनाओं पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी ¨सह पाटिल ने पत्र भेजकर शबासी दी थी। साथ ही उन्हें युवा कथाकार सहित अन्य पुरस्कार मिल चुके हैं। साथ ही वह परिवार परामर्श केंद्र में भी पारिवारिक मामलों का निस्तारण कर चुकी है। जिस पर प्रशासन उन्हें सम्मानित कर चुका है।


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