परमिट के लिए नहीं पड़ेगा हांफना
गोंडा : खेतिहर किसानों को पेड़ की उपज पाने के लिए परमिट के लिए नहीं दौड़ना पड़ेगा। कारण राष्ट्रीय कृषि
गोंडा : खेतिहर किसानों को पेड़ की उपज पाने के लिए परमिट के लिए नहीं दौड़ना पड़ेगा। कारण राष्ट्रीय कृषि वन योजना में पेड़ कटान की कानूनी बेड़ियां खत्म होने जा रही हैं। यह पहल की है केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने। प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर मंत्री ने योजना के बारे में जानकारी दी। राज्य में वन विभाग ने योजना पर अमल भी शुरू कर दिया है।
बाजार में अस्सी फीसद लकड़ी जंगल से बाहर इलाके किसानों के खेतों से आती है लेकिन कानूनी अड़चनों से किसानों को वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता। कारण किसान अपने खेतों को परमिट बनवाने व ढुलान परमिट बनवाने के लिए दौड़ लगाने में सक्षम नहीं है और यह कार्य विभाग की मिली भगत से दलाल कर रहें हैं। वन विभाग के अलावा पुलिस भी लकड़ी ढुलान में बाधा डालती है। नतीजा किसानों की पेड़ों की लकड़ी का लाभ बिचौलिये उठा रहे हैं। इससे परेशान किसान इमारती लकड़ी पैदा करने से कन्नी काट रहे हैं। इसे देखते हुए केंद्रीय राज्य मंत्री प्रकाश जावेडकर ने सितंबर में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को पत्र लिखा था। इस पर अमल करने के लिए मुख्य मंत्री ने प्रमुख वन संरक्षक से राय मांगी थी। विभागीय अधिकारी नई व्यवस्था को अमली जामा बनाने में जुट गये हैं।
सिर्फ दो प्रजातियों पर छूट : वन विभाग ने सिर्फ बबूल व यूकेलिप्टस पेड़ कटान की छूट दे रखी है और शीशम, सागौन, नीम, महुआ, आम के पेड़ों के लिए परमिट जरूरी है।
खर्चा निकालकर ठेकेदार देता है कीमत : लकड़ी ठेकेदार परमिट व पुलिस का खर्चा निकाल कर किसान को पेड़ की कीमत अदा करता है। कभी-कभी पेड़ बगैर परमिट के कट जाते हैं तो वन विभाग की टीम और पुलिस पार्टी वसूली में जुट जाते हैं।
नई व्यवस्था पर मंथन शुरू : नई व्यवस्था पर मंडल के वन सरंक्षक व प्रभागीय वनाधिकारियों की बैठक पांच नवंबर को चुकी है जिसमें सामाजिक आर्थिक विकास के लिए किसान के पेड़ों की कटान पर परमिट रोक हटने पर जोर दिया गया और प्रमुख वन संरक्षक ने इस पर अपनी मुहर लगा दी है। अब नीति विश्लेषण समन्वयक व शासन को फैसला लेना है। देवीपाटन मंडल के अधिकारियों ने सहमति दे दी है। इसमें जंगल क्षेत्र शामिल नहीं है।
क्या हैं नियम : किसान अपने लगाये पेड़ को बेंचने के लिए खतौनी, खसरा व फोटो लेकर वन विभाग को परमिट की अर्जी दे। पेड़ों की संख्या के अनुसार अधिकारी पेड़ों का निरीक्षण कर रिपोर्ट लगाये तब जाकर परमिट जारी हो। इस दौरान एक सप्ताह का समय यूं ही बीत जाता। यह कार्य दलालों के लिए सरल है लेकिन आम किसान के लिए कठिन है।
क्या हैं दिक्कतें : किसान अपनी बेटी की शादी या बीमारी के लिए पेड़ काटे तो फौरन वन रक्षक व क्षेत्र के थाने के सिपाही मौके पर पहुंच जाते हैं । इसके बाद मोल तोल शुरू होगा। इसकी अदायगी चाहे किसान करें या ठेकेदार। यह सिलसिला कानूनी बेड़ियों के सहारे चल रहा है।