जश्न-ईद-ए-गदीर की रही धूम
गाजीपुर : विशेश्वरगंज स्थित इमामबाडा में रविवार को जश्न-ईद-ए-गदीर की धूम रही। इसमें बाहरी एवं
गाजीपुर : विशेश्वरगंज स्थित इमामबाडा में रविवार को जश्न-ईद-ए-गदीर की धूम रही। इसमें बाहरी एवं मुकामी
शायरों ने कलाम सुना कर खूब वाहवाही लूटी। इसमें नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में काफी तादाद में लोग शामिल हुए। मुसलमानों के चौथे एवं शिया समुदाय के पहले इमाम हजरत अली का इस्लाम में खास मुकाम है। हर फिरका, हर तबका इनके इल्म, शुजाअत, हक पसंदी, दरियादिली, गरीबों के प्रति हमदर्दी का कायल है।
अपने खिलाफत के दौरान इनका इंसाफ तारीख के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया। इनकी रहमदिली लोगों के सिर चढ़ कर बोलती थी। पूरी ¨जदगी इस्लाम के लिए लगा दी। मकसद इतना था कि शांतिप्रिय मजहब इस्लाम का असल मकसद लोगों तक पहुंचे। काफी परेशानियां उठाई। मुसीबतें और जुल्म का शिकार हुए लेकिन हर कदम पर अपने रब का शुक्र अदा किया। पूरी ¨जदगी इल्म, मेहनत, ईमानदारी और इबादत पर जोर दिया। इन्होंने अपने भाई रसूल (स.) से बचपन में किए हुए वादे को बखूबी निभाया। मौलाना तनवीरूल हसन जैनबी ने कहा कि अली ने अपना पूरा जीवन इस्लाम की खिदमत के लिए लगा दिया। जहां जरूरत पड़ी वहां जंग में बहादुरी का मुजाहिरा किया। इसी वजह से रसूल (स.) ने गदीर के मैदान में लोगों को इकट्ठा किया और हजरत अली को अपने हाथों पर उठाकर कहा जिसका मैं मौला, अली भी उसके मौला । लिहाजा इस दिन का खास मुकाम है। महफिल की शुरूआत मुकामी शायरों से हुई। वक्त बीतने के साथ-साथ महफिल उरूज पकड़ती चली गई।
दोपहर बाद बाहरी शायरों में रजी बिस्वानी, शोएब नौगाववी, सुहैल बस्तवी, सुहैल बाराबंकवी, इरफान हैदर आजमी एवं अख्तर लखनवी ने शेर सुना कर खूब वाहवाही लूटी। उम्मीद आजमी का यह शेर 'दस्ते अहमद पर कभी बिस्तरे अहमद पर कभी, मंजिले हैदरे कर्रार कोई क्या जाने' सुनाया तो लोग उछल पड़े। अंत शायर रजी विस्वानी ने शेर सुना कर महफिल में आए लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। देर शाम तक पूरा मजमा जमा रहा। अल गदीर कमेटी की ओर से महफिल में आने वालों का शुक्रिया अदा किया गया। परवेज, शंटू, उर्फी रिजवी, रजा जमाल, वाहिद एवं साहिर आब्दी ने महफिल के आयोजन में अहम भूमिका निभाई।