विजयशंकर को कोस रहा बवाड़े गांव
सुहवल (गाजीपुर) : पत्नी संगीता को मार डालने के बाद खुद भी जाने देने वाले विजयशंकर पासी को समूचा बवाड़े गांव कोस रहा है। घटना के बाद मौके पर जुटे सैकड़ों लोगों की आंखों में उसके प्रति गुस्से का सैलाब था तो उसकी पत्नी के प्रति गम के आंसू भी। अचंभित करने वाले कृत्य पर सभी हैरान थे। ग्रामीणों के अलावा मौके पर पहुंचे सीओ जमानिया वेदप्रकाश सिंह व थानाध्यक्ष सुहवल प्रवीण यादव भी स्तब्ध थे।
विजयशंकर का परिवार मूल रूप से पड़ोस के गांव भिक्खी चौरा का रहने वाला है। उसके पिता राजा पासी और चाचा राजदेव कई साल पहले एनएच 24 पर स्थित कालूपुर चट्टी से बवाड़े को जाने वाले मार्ग के किनारे गांव से बाहर आकर बस गए। वे झोपड़ी डालकर यहां रहते हैं। स्नातक तक पढ़ा-लिखा विजय कुछ साल पहले गांव से थोड़ी दूर पर स्थित एक स्कूल में पढ़ाता था।
शादी के बाद पुत्र पैदा होने पर जिम्मेदारी का एहसास कराए जाने पर वह कमाने के लिए गुजरात चला गया। उसकी पत्नी संगीता वैसे तो गांव पर ही रहती थी लेकिन ढाई महीने पहले वह उसके साथ गुजरात भी गई थी। वहां एक माह रहकर डेढ़ महीने पहले वह फिर गांव आ गई थी।
दोनों ने साथ काटा था चारा
पति-पत्नी के बीच किसी बात पर अनबन को लेकर मामला भले ही हत्या कर आत्महत्या तक जा पहुंचा लेकिन दोनों के बीच प्रेम भी गजब का था। शुक्रवार की शाम को गांव के लोगों ने दोनों को खेत में एक साथ पशुओं के लिए चारा काटते हुए देखा था। दोनों आपस में हंसी-ठिठोली भी कर रहे थे।
बच्चों की भी जोखिम में डाला जान
पत्नी की हत्या के बाद बेसुध विजय शंकर ने अपनी आत्महत्या का जो रास्ता चुना, उससे भी लोग आहत दिखे। घटनास्थल पर जुटे ग्रामीणों में अधिकांश यही कह रहे थे कि यदि उसे खुद को भी मारना ही था तो बस के आगे कूदकर बच्चों को भी जान जोखिम में डालने की क्या जरुरत थी, थोड़ी ही दूरी पर बह रहीं गंगा में जाकर क्यों नहीं समा गया।
बेटा बदहवाश, मां-भाइयों का बुरा हाल
मां से टिफिन लेकर घटना के कुछ समय पहले ही स्कूल गया सात वर्षीय बेटा नीरज बदहवाश हो गया था। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि चंद पल पहले जिस मां ने उसे खुशी-खुशी स्कूल भेजा था अब वह लाश बन चुकी है। वह बिलख रही दादी व दो चाचा को देखकर सहमा नजर आ रहा था। उधर घटना के समय अपने मायके धामूपुर गई विजय शंकर की मां मालती देवी घर आते ही विभत्स मंजर देख अचेत हो गई। गांव की महिलाएं पानी का छींटा मारकर उसे होश में लाकर ढांढस बंधा रही थीं। गांव के लोग उस समय को कोस रहे थे, जब यह वारदात हुई।