तलाश तालाबों की--बचा है तीन झीलों का अस्तित्व, ठोस पहल का इंतजार
जागरण संवाददाता, साहिबाबाद: साहिबाबाद की तीन झीलों का अस्तित्व अभी बचा हुआ है। प्रशासन ठोस पहल करे त
जागरण संवाददाता, साहिबाबाद: साहिबाबाद की तीन झीलों का अस्तित्व अभी बचा हुआ है। प्रशासन ठोस पहल करे तो इन तीनों झीलों को फिर से गुलजार किया जा सकता है। एनजीटी में इन झीलों के अस्तित्व की लड़ाई लड़ी जा रही है लेकिन सामाजिक लोगों और प्रशासन का साथ मिले तो न सिर्फ इन झीलों को आबाद किया जा सकता हैं बल्कि पर्यटन की ²ष्टि से भी इनका विकास किया जा सकता है।
साहिबाबाद के अर्थला, पसौंडा और अटौर में यह झीलें हैं। अर्थला झील के विकास के लिए जीडीए ने काफी काम किया हैं और इस झील को काफी हद तक अतिक्रमण से मुक्त किया जा चुका है। वहीं पसौंडा की झील करीब दस हजार वर्गमीटर में फैली है, जो अब धीरे-धीरे सिमटती जा रही है और उस पर प्ला¨टग भी की जा रही है। इसके अलावा अटौर की झील अभी प्राकृतिक रुप से मौजूद है। इन झीलों को गुलजार करने की लड़ाई एनजीटी में लड़ने वाले सुशील राघव ने बताया कि अटौर की झील का तो बहुत शानदार तरह से विकास किया जा सकता है। सिटी फारेस्ट के बाद हरनंदी नदी के दूसरी ओर इस प्राकृतिक झील का अस्तित्व अब भी बरकरार है और स्थानीय लोगों की ओर से भी झील को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जा रहा है।
डासना झील को बना सकते हैं उदाहरण: पर्यावरणविदों का मानना है जिस तरह से प्रशासन और जीडीए ने डासना झील का विकास किया है, उसी तर्ज पर इन झीलों को विकसित करने की योजना बननी चाहिए। अपर नगर आयुक्त डीके सिन्हा ने बताया कि पसौंडा और अटौर की झीलें नगर निगम के अंर्तगत आती हैं और इनके विकास की योजना बनाई जा रही है। सभी विभागों से बातचीत के बाद इस पर काम शुरू कराया जाएगा।
अर्थला झील के पास हो रहे अतिक्रमण को हाईकोर्ट के आदेश पर हटाया गया है। बाकी दो झीलों के बारे में योजना बन रही है। सभी विभागों से सहमति के बाद इनका विकास किया जाएगा।
डीके सिन्हा, अपर नगर आयुक्त ।