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पुल के नीचे स्कूल बना जला रहीं शिक्षा की लौ

अदिति उन्मुक्त, गाजियाबाद मन में अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो और सही मायनों में कुछ करने की ललक हो तो अभ

By Edited By: Published: Sat, 20 Dec 2014 01:36 AM (IST)Updated: Sat, 20 Dec 2014 01:36 AM (IST)
पुल के नीचे स्कूल बना जला रहीं शिक्षा की लौ

अदिति उन्मुक्त, गाजियाबाद

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मन में अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो और सही मायनों में कुछ करने की ललक हो तो अभाव कभी भी बाधा नहीं बनते। बल्कि कई बार यही अभाव कुछ कर गुजरने की हिम्मत देते हैं। कुछ ऐसी ही दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ शालू सिंह ने जब गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो उनके सामने कई बाधाएं आई लेकिन उन्होंने डट कर सामना किया और शिक्षा की लौ जलाने में जुटी रहीं। आज वह दो सौ से अधिक बच्चों को नि:स्वार्थ भाव से शिक्षा देकर उनके जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर रही हैं।

मां ने शुरू किया था पांच बच्चों को पढ़ाना

विवेकानंद नगर में बने पुल के नीचे शालू सिंह सेवा समर्पण सरस्वती विद्या मंदिर नाम से स्कूल चलाती हैं। इस स्कूल में झुग्गियों में रह रहे, कूड़ा बिनने वाले और घरों में काम करने वाले बच्चे पढ़ते हैं। शालू बताती हैं कि इस स्कूल को संचालित करने का मुख्य श्रेय उनकी माता कंचन भारद्वाज को जाता है। उनकी माता ने वर्ष 1992 में इस स्कूल को विवेकानंद नगर में शुरू किया था। पांच बच्चों से शुरूआत हुई और आज टीन शेड के नीचे ढाई सौ बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। शालू बताती हैं कि उनकी माता के निधन के बाद से वह इन बच्चों को कई वर्षो से नि:स्वार्थ भाव से पढ़ा रही हैं और स्कूल को संचालित करने में पूरा योगदान दे रही हैं।

दान की रकम से देती हैं शिक्षिकाओं को वेतन

इस स्कूल में न तो बिजली है न ही हवा व धूप को रोकने का कोई साधन। फिर भी शालू के अथक प्रयासों और अन्य शिक्षिकाओं के सहयोग से स्कूल में बच्चों को शिक्षा दी जा रही है। शालू बताती हैं कि स्कूल में छह शिक्षिकाएं हैं, जिनका वेतन दान में मिले पैसों से दिया जाता है। इसके अलावा बच्चों को स्टेशनरी व किताबें आदि भी दान से एकत्र करके दी जाती हैं।

होती हैं कई परेशानियां

खुले में बच्चों को पढ़ाने के कारण गर्मियों में तेज धूप और बारिश के मौसम में काफी परेशानियां आती हैं। सर्दियों में बच्चे ठंड में खुले में पढ़ने को मजबूर हैं। बावजूद इसके उन्होंने कभी बच्चों को पढ़ाना नहीं छोड़ा।

सिखाई जाती हैं हर गातिविधियां

इस स्कूल में बच्चों को नर्सरी से कक्षा आठ तक की शिक्षा दी जाती है। इसके अलावा समय-समय पर बच्चों को नृत्य, कला आदि गतिविधियां भी सिखाई जाती हैं। कुल मिलाकर गरीब बच्चों के जीवन में शालू एक दीपक बनके उनके जीवन में प्रकाश फैला रही हैं।


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