वोट नहीं, यह संबंधों की कहानी है..
फीरोजाबाद(संवाद सूत्र, नारखी :) वो अब गांव में नहीं रहते। कोई दिल्ली में है तो कोई लुधियाना में। कोई
फीरोजाबाद(संवाद सूत्र, नारखी :) वो अब गांव में नहीं रहते। कोई दिल्ली में है तो कोई लुधियाना में। कोई चंडीगढ़ में है तो कोई गुजरात में काम कर रहा है। कोई कर्मचारी है तो कोई कारोबारी। यहां होने वाले विकास से गांव की सूरत तो संवरती है, लेकिन यह कहना भी गलत नहीं, गांव में विकास न हो तो भी उनकी सेहत पर असर नहीं पड़ता। तीज त्योहारों पर गांव में एक-दो दिन गुजारने आना भी कभी कभी मुनासिब नहीं हो पाता, लेकिन इस बार का त्योहार जुदा था। जो साल में नहीं, सालों में एक बार आता है। पांच साल में एक बार। ऐसे में बाहर काम करने वालों को भी देहाती राज गांव तक खींच लाया। इसकी वजह भी थी किसी का बचपन का दोस्त चुनाव में था तो किसी के खानदान से जुड़े हुए लोग। ऐसे में एक-एक वोट कीमती था तो अपने प्रत्याशी का संख्या बल भी बढ़ाना था। नारखी निवासी वसीम सहित नदीम भी लुधियाना से अपने गांव सिर्फ वोट डालने आए थे। बताया जाता है इनके परिवार का कोई खानदानी चुनावी अखाड़े में था ऐसे में इनके वोट की कीमत भी बढ़ गई। ऐसा सिर्फ यहीं नहीं हुआ। श्रीरामगढ़ी निवासी एक परिवार का युवक बाहर सरकारी नौकरी करता है। चुनाव में विशेष तौर पर छुट्टी लेकर उसने शुक्रवार को वोट डाला। ऐसा सिर्फ एक-दो परिवारों के साथ में नहीं था, बल्कि हर गांव में ऐसे परिवार थे। इसकी वजह भी थी हर प्रत्याशी बाहर रहने वाले वोटर्स को गांव में बुला रहे थे, ऐसे में जब अपने ही परिवार के लोग नहीं आते तो दूसरों को कैसे बुलाते?
कुछ सियासी दखल के लिए आए गांव
वहीं गांव से बाहर नौकरी करने वाले कई युवक गांव की सियासत में शुरू से दखल रखते आए। ऐसे में वोट का मोह उन्हें भी गांव तक खींच लाया। एका के एक गांव के निवासी अजय दिल्ली में नौकरी करते हैं। वह सिर्फ इसलिए गांव में आए, क्योंकि हर बार गांव में उनके दोस्त चुनाव जीतते हैं। इस बार भी दोस्त की जीत के लिए पत्नी एवं बच्चों के साथ में गांव पहुंच गए। इनके दो दोस्त भी दिल्ली में रहते हैं, उनके परिवार को भी साथ लाए। अजय का कहना था सात वोट तो हमारे एवं दोस्तों के हैं, फिर गांव की सियासत में एक-एक वोट कीमती है।
किराया भेजकर भी बुलाए बाहर रहने वाले
वहीं जिनसे प्रत्याशियों का कोई नाता नहीं था या जिनके आने में समस्या थी। उन वोटर्स के लिए प्रत्याशियों ने धन खर्च करने से भी गुरेज नहीं किया। भरतपुरा सहित कई गांवों में बाहर रहने वाले कुछ परिवारों को गांव में आने के लिए किराए की धनराशि भी गुप चुप ढंग से भेजने की खबर है। इनके आने एवं जाने का खर्चा प्रत्याशियों ने ही उठाया।