मम्मी-डैडी की सोच को मिला समाज का साथ
जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद : अब तक चाहते हुए भी लाड़लियों से कुछ नहीं कह पाते थे। सोचते थे समाज क्या कहेगा? दकियानूसी सोच का ठप्पा न लग जाए, लेकिन जब रविवार को आगरा में आयोजित वैश्य समाज की सभा में यह बात जोरदारी से उठी तो अभिभावकों को भी बल मिला है। आए दिन समाज में घटती घटनाओं के बाद में बच्चों की सुरक्षा को दिलाया मोबाइल ही उनके लिए खतरा बन रहा था। ऐसे में समाज से उठी इस बात की हर तरफ तारीफ हो रही है। वहीं कई अभिभावक तो पहले से ही आज के वक्त में हो रही घटनाओं को देखते हुए बच्चों के मोबाइल पर नजर रखे हुए हैं।
''फैसला अच्छा है, लेकिन कई बार राह में ऐसी परिस्थिति बन जाती हैं जहां बेटियों को मोबाइल की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन आज के दौर को देखते हुए किशोरावस्था में बेटियों को मोबाइल से दूर रखना ही बेहतर है। स्कूल बस अथवा वैन से स्कूल जाने वाली बेटियों को मोबाइल नहीं देना चाहिए। बेटियों के मोबाइल को चेक करना तो अभिभावकों की वैसे भी जिम्मेदारी है। क्योंकि किशोरावस्था में बच्चों पर निगरानी जरूरी है। बच्चों को इस उम्र में ज्यादा समझ नहीं होती है।''
-शशी झिंदल
गृहणी
फोटो नंबर 8
''समाज के लिए यह एक अच्छा सुझाव है। आज समाज में जिस तरह की विकृतियां जन्म ले रही हैं, उसकी असली वजह मोबाइल है। नादान किशोरियों को कुछ लोग अपने जाल में फंसा लेते हैं। इसका एक बड़ा माध्यम मोबाइल ही बनता है। समाज को इस पहल का स्वागत कर पूरी तरह से अनुपालन करना चाहिए। हम अपने परिचितों के बीच इस बात का पालन कराएंगे।''
-पंकज गुप्ता
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष
माथुर वैश्य युवा महासभा
फोटो नंबर नौ
''आजकल जो माहौल हो गया है। मोबाइल से सुरक्षा कम खतरा ज्यादा बढ़ रहा है। स्कूल में तो मोबाइल पूरी तरह से बैन होना चाहिए। अगर बच्चे फोन पर एक कोने में जाकर लंबी बात कर रहे हैं तो इस पर निगाह रखने की जरूरत है। माता-पिता चाहें तो कॉल डिटेल भी एक दो माह के बाद में निकलवा सकते हैं। बेटियों की सुरक्षा के लिए उनकी निगरानी में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि किशोरावस्था में ही बच्चे बहकते हैं। हम तो कहते हैं लड़कों के मोबाइल पर भी निगाह रखनी चाहिए।''
-मनीष अलंकार
पूर्व गर्वनर
माथुर वैश्य इंटरनेशनल क्लब
फोटो नंबर 10