Move to Jagran APP

अब नहीं बरस रहे कॉपियों से गांधी छाप!

By Edited By: Published: Wed, 16 Apr 2014 06:41 PM (IST)Updated: Wed, 16 Apr 2014 06:41 PM (IST)
अब नहीं बरस रहे कॉपियों से गांधी छाप!

जागरण संवाददाता, फीरोजाबाद : ज्यादा दिन नहीं बीते। 3-4 साल पहले परीक्षक कॉपियां जांचते थे तो हर दूसरी-तीसरी कॉपी से नोट निकलते थे। ऐसे में मूल्यांकन कक्षों में भी दिन भर नाश्तों का दौर चला करता था। रोज कई कॉपियों में 100 से 500 तक रुपये निकल आते थे तो इनमें से कुछ को खर्च करने में परीक्षक भी गुरेज नहीं करते थे। लेकिन इस बार तो पूरा-पूरा दिन गुजर जाता है, लेकिन कॉपी में गांधी छाप देखने के लिए आंख तरस जाती है।

loksabha election banner

यही वजह है अब मूल्यांकन कक्षों में पहले की तरह चाय-नाश्ते के दौर भी नजर नहीं आ रहे। एक परीक्षक कहते हैं पहले तो नाश्ता भी आता था अब तो कभी चाय पीने का मन करता है तो बाहर अकेले जाकर पी आते हैं।

इस संबंध में एक परीक्षक का कहना है कि परीक्षा में जब सख्ती का आलम होता था तो परीक्षार्थी मजबूरी में पास होने की तमन्ना के साथ में 50 या 100 के नोट कॉपी के साथ नत्थी कर देता था। अब तो परीक्षा केंद्रों पर ही नकल हो रही है तो परीक्षार्थी क्यों रखने लगे कॉपियों में रुपये। इक्का-दुक्का केंद्र पर जहां, नकल नहीं होती है, उस केंद्र की कुछ कॉपी में जरूर रुपये निकल आते हैं।

गलत जवाब कर रहे नकल की चुगली

अगर सभी के जवाब सही हैं तो नकल का आरोप लगाना सही भी नहीं, लेकिन इसका क्या करें। सभी का जवाब गलत भी एक सा हो। एमजी में एक मूल्यांकन केंद्र पर ऐसा ही हुआ। बहुविकल्पीय प्रश्न नंबर पांच में एचटूएस का पीएच मान पूछा गया तो सभी ने 7 से ज्यादा वाले विकल्प को चुना। जबकि पीएच मान सात से कम होता है। यह बताता है किस तरह से कॉपियों में नकल हुई है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.