सौहार्द को हमेशा संजोती रही अयोध्या
फैजाबाद : अयोध्या हमेशा से सौहार्द के पक्ष में रही है। मंदिर-मस्जिद विवाद रहा हो अथवा दोनों संप्रदाय
फैजाबाद : अयोध्या हमेशा से सौहार्द के पक्ष में रही है। मंदिर-मस्जिद विवाद रहा हो अथवा दोनों संप्रदायों को उद्वेलित करने की कोई और वजह। जब भी सौहार्द खतरे में पड़ा, इस नगर के लोगों ने भाईचारा का परिचय बखूबी दिया। मंगलवार को आए सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का दोनों पक्षों ने स्वागत कर रामनगरी की इस परंपरा की डोर को और मजबूत किया। अयोध्या यानी ऐसी जगह जहां युद्ध न हुआ हो। भले ही अयोध्या की फिजाओं में शांति हो, लेकिन अयोध्या को लेकर देश की सियासत अक्सर गर्माती रहती है। 90 के दशक में इस मुद्दे ने समाज के ताने-बाने पर भी बड़ा प्रभाव डाला। इसका चरम छह दिसंबर 1992 को विवादित ढ़ांचा ढहाये जाने के रूप में सामने आया। विवाद को लेकर पूरे देश में जगह-जगह उपद्रव हुए, उन दिनों नगरी में भी अशांति दिखी लेकिन इस जख्म को रामनगरी में अपने सदभाव से जल्द ही भर लिया और उसके बाद इस विवाद को लेकर जिले में एक भी फसाद नहीं हुआ। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह जुड़वा शहरों के वा¨शदों के बीच भाईचारा की अटूट डोर रही। आशंकाएं तो कई बार पैदा हुईं, लेकिन अयोध्या ने किसी भी नापाक हवा को पनाह नहीं दी। इससे पूर्व वर्ष 1990 में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथयात्रा निकाली। इसके बाद देश के कई हिस्सों से सांप्रदायिक ¨हसा की घटनाएं सुनाई पड़ीं, लेकिन अयोध्या तब भी शांत रही। रथयात्रा के बाद उसी वर्ष अक्टूबर में अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाई गई। कई लोग मारे गए, लेकिन अयोध्या फिर भी खामोश रही। रामनगरी अपने सौहार्द को संजोए रही। यही वजह रही कि 30 सितंबर वर्ष 2010 को आए हाइकोर्ट के फैसले को लेकर भी अयोध्या जरा भी विचलित नहीं दिखी। न ही पुलिस रिकार्डों में कोई मुकदमा दर्ज हुआ। बंदिशों में जकड़ी अयोध्या हर साल विवादित ढांचा ध्वंस की बरसी पर अपने सछ्वाव की परीक्षा में खरी उतरती रही। मंगलवार को आई सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के दिन भी अयोध्या में लोग अपसी सछ्वाव के साथ इस विवाद का हल तलाशने की ओर उन्मुख दिखे। आध्यात्मिक गुरु जय¨सह चौहान के अनुसार यही अयोध्या की तासीर है। कोई भी मंदिर या मस्जिद ईंट-गारे से नहीं प्रेमपूर्ण हृदय से निर्मित होता है। इसका परिचय अयोध्या ने बखूबी दिया है। गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड के मुख्यग्रंथी ज्ञानी गुरुजीत ¨सह कहते हैं कि सछ्वाव के बीच मंदिर का निर्माण बहुत ही गौरवपूर्ण है। शायद तभी सच्चे मंदिर का निर्माण संभव होगा।