जादुई आवाज के साथ जीवन में घुली भरपूर मिठास
फैजाबाद: सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज जितनी जादुई है, उनकी जीवन यात्रा में उतनी ही मिठास घुली
फैजाबाद: सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर की आवाज जितनी जादुई है, उनकी जीवन यात्रा में उतनी ही मिठास घुली हुई है। इस संयोग-समीकरण से परिचय नारायणदास खत्री मेमोरियल ट्रस्ट की ओर से जीआईसी परिसर में संयोजित पुस्तक मेला की तीसरी शाम ने कराया। लता: सुर-गाथा। यह नाम है, सुर साम्राज्ञी के जीवन पर केंद्रित ताजा कृति का। इसके प्रणेता हैं, अयोध्या राजा बिमलेंद्रमोहन मिश्र के इकलौते पुत्र एवं ख्यातनाम युवा साहित्यकार यतींद्र मिश्र। इस कृति के सृजन के संबंध में छह वर्ष से अधिक समय तक वे इस महान गायिका से उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बराबर वार्तालाप करते रहे। यह वार्ता कितनी गौरवपूर्ण एवं सार्थक रही, इसकी तस्दीक न केवल करीब छह सौ पृष्ठ की कृति के साथ स्वयं यतींद्र से होती है। जैसा कि वे कहते हैं, लता दीदी जैसी महान विभूति को विशेष उपक्रम के तहत जानना और उसे ग्रंथ की शक्ल देते-देते मैं स्वयं संस्कार, परिष्कार एवं अनुभव के नए तल पर प्रतिष्ठित हुआ। पुस्तक मेला के आडीटोरियम से उनका यह रुख बरबस छलक रहा था। लता के गाए किसी कालजयी गीत की तरह मिठास से भरे हुए यतींद्र ने बताया, कृति के संबंध में उनसे बराबर बातचीत की कोशिश संकोच में भी डालती थी पर हर बार वे खनकदार एवं दैवी आवाज के साथ उदारता-आत्मीयता से सराबोर रहती थीं। ..और लता के रवैए से उन्हें पुस्तक लेखन में काफी मदद मिली। यतींद्र की यह भी धारणा बनी कि जीवन के प्रति लता दीदी का सकारात्मक ²ष्टिकोण उनके सुरीले साम्राज्य को अप्रतिम बनाने वाला रहा। पुस्तक मेला परिसर के आडीटोरियम में साहित्य-संगीत अनुरागियों की आंखें चमक उठीं और दिल हुलस गया, जब यतींद्र ने बताया कि मात्र छह साल की अवस्था में लता ने अपने संगीतज्ञ पिता दीनानाथ की गोद में बैठकर राग दीक्षा ली। करीब डेढ़ घंटे की वार्ता में सुर सामा्रज्ञी की विराट जीवन यात्रा और उस पर केंद्रित कृति को समेट पाना आसान नहीं था पर उनके बारे में लोगों ने जितना भी जाना-सुना, इसकी तृप्ति उनकी भंगमा से साफ बयां हो रही थी।
दशकों बाद भी कायम जादू
पुस्तक मेला परिसर में यूं तो 80 के करीब प्रकाशकों के स्टाल और हजारों लेखकों की कृतियां प्रदर्शित हैं पर कुछ ऐसी कृतियां हैं, जिनकी लोकप्रियता का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है और वे हाथों-हाथ बिक रही हैं। इन कृतियों में महावीरप्रसाद का अभिनंदन ग्रंथ, श्रीलाल शुक्ल की प्रतिनिधि कृति रामदरबारी, तस्लीमा नसरीन की लज्जा, डॉ. काशीनाथ ¨सह की काशी का अस्सी, भगवतीशरण वर्मा की चित्रलेखा, राही मासूम रजा की आधा गांव, पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की मेरी 51 कविताएं, भीष्म साहनी की तमस, मुनव्वर राणा की मां, नरेंद्र कोहली की महासमर एवं कारा तोड़ो कारा आदि प्रमुख हैं।