'नई पीढ़ी के रचनाकारों में काफी सामर्थ्य'
फैजाबाद : प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा को मलाल है कि उनके लेखन खासतौर से बाल साहित्य को आलोचकों ने
फैजाबाद : प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा को मलाल है कि उनके लेखन खासतौर से बाल साहित्य को आलोचकों ने महत्व नहीं दिया। हालांकि उन्होंने यह कहकर आलोचकों की भूमिका को महत्वहीन ठहराने की कोशिश की कि लेखक की ताकत उसके पाठक हैं और रचना की स्वीकार्यता। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के रचनाकारों में काफी सामर्थ्य है। आवश्यकता है तो केवल नन्हीं कलम को उभारने की। उसे प्रोत्साहित करने की। इससे साहित्यिक माहौल बनेगा। पुरानी पीढ़ी के रचनाकारों की अहमियत बढ़ेगी और समाज भी सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होगा। फैजाबाद पुस्तक मेले में शिरकत करने आयी नासिरा शर्मा से 'जागरण' ने अलहदा मुलाकात की। पेश है बातचीत के प्रमुख अंश -
प्राय: कहा जाता है कि नई पीढ़ी में साहित्य की समझ नहीं है, इससे कहां तक सहमत हैं?
-प्रतिभा की कमी है ही नहीं, लेकिन बच्चों को स्कूलों ने इस कदर बांध रखा है, उनकी सोच ही विकसित नहीं हो पा रही है, जो कोर्स किसी काम के नहीं उन्हें ढोया जा रहा है। बहुत जरूरी है बच्चों की अपनी दुनिया का दरवाजा खोलना।
क्या आपको लगता है कि बाल साहित्य की उपयोगिता अब भी उतनी ही है जितनी दो-चार दशक पहले थी?
-पहले तो हमें लगता ही नहीं है कि हम पुराण व इतिहास की सोच से उबर पाए हैं। क्रिएटिव बाल साहित्य भी लिखा जा रहा है। अनुवाद की अच्छी-अच्छी किताबें हैं। ..पर रचनात्मक लेखन को वह मुकाम नहीं हासिल हुआ, जिसका वह हकदार है।
इसकी क्या वजह मानती हैं?
-हम लोगों के मिजाज में बच्चों की सोच, उनकी दुनिया को समझने का माद्दा नहीं विकसित हुआ है। अभी हमारी सोच इतनी ही है कि बच्चों को नौकरी मिल जाए या फिर उनके लिए थोड़ी जायदाद छोड़ जाएं।
बाल साहित्य में किन रचनाकारों ने प्रभावित किया?
- यह तो नहीं कहूंगी कि मैं किसी से प्रभावित हुई। ..उर्दू में पूर्व उप राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की 'अबू खां की बकरी' जितनी मशहूर है, उतनी हिंदी में कोई कहानी नहीं। हालांकि 20 साल हो गए बाल साहित्य को पढ़े हुए।
बाल साहित्य राजा-रानी अथवा परियों की कहानी से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। आपको नहीं लगता कि बदलाव की जरूरत है?
-स्वरूप बदला जा सकता है। पर जब परियों की कहानियां सुनाई जाती हैं तो बच्चे खास लोक में विचरण की अनुभूति करते हैं। पांच से दस साल तक के बच्चों को क्या आकर्षित करता है, इस पर उनसे ही सवाल करना चाहिए, तभी नई चीजें सामने आएंगी।
आलोचक बाल साहित्य को कितना महत्व देते हैं?
-मुझे लगता है कि उस तरफ किसी का ध्यान नहीं गया, जबकि जाना चाहिए था। जापान, इंग्लैंड, रूस में बेहतरीन बाल कहानियां लिखी जा रही हैं। पेंटिंग भी शानदार होती है।
स्त्री व दलित विमर्श जैसे सवालों पर क्या कहेंगी?
-विमर्श तो होना ही चाहिए। विमर्श होगा तो उनकी समस्याएं सामने आएंगी, लेकिन कहानी एवं उपन्यास को इसी विमर्श के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है। इसे कला और जिन्दगी के रूप में लेना चाहिए।
साहित्य में सांप्रदायिक नजरिए से लेखन की बढ़ती प्रवृत्ति को किस रूप में लेती हैं?
-सांप्रदायिक नजरिए से लेखन हो रहा है, लेकिन उसके विपरीत भी। दोनों तरह का लेखन हो रहा है। यह हिंदुस्तान में स्वीकार्य नहीं हो सकता।