यहां आज भी डिबरी से रोशन होते घर
उदी, संवादसूत्र : पारपट्टी क्षेत्र के बीहड़ी विकास खंड बढ़पुरा को वोट बटोरने का जरिया भर समझा जाता रहा है। उपेक्षा का आलम यह है कि यहां सड़क, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं ही उपलब्ध नहीं हैं ऐसे में विकास तो दूर की बात है। आजादी के बाद से विकास के नाम पर आश्वासन और वादों की लॉलीपॉप मिलते रहने से अब यहां के ग्रामीणों में चुनाव के प्रति कोई उत्साह नजर नहीं आ रहा। हालत यहां तक बदतर है कि कई गांवों में घर डिबरी से रोशन होते हैं।
चंबल और यमुना नदियों के मध्य स्थित पारपट्टी नाम से विख्यात इस बीहड़ी क्षेत्र में लगभग पचास हजार मतदाता अब तक विकास की किरण को तरस रहे हैं। एक ओर जहां पूरे देश में लोकसभा चुनाव की सरगर्मिया नजर आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर इस क्षेत्र के निवासियों में कोउ नृप होय हमें का हानि कहावत के अनुसार अपनी गृहस्थी एवं खेती-किसानी में लगे हैं। आश्वासनों के आसरे विकास के इंतजार में इन लोगों की अब जुबान ही बंद हो गई है। इस क्षेत्र में 34 ग्राम सभाओं के करीब 100 गांव इटावा विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। इनमें बसने वाली 70 हजार की आबादी में नई मतदाता सूची के अनुसार लगभग 48 हजार मतदाता वोट डालेंगे। यद्यपि इस क्षेत्र को क्षत्रिय बाहुल्य कहा जाता है लेकिन अन्य जातियों की भी यहां कोई कमी नहीं है। बीहड़ क्षेत्र होने का दंश क्षेत्रवासियों को हमेशा सताता रहा है। शहर की चकाचौंध से निकलकर यमुना नदी पार करते-करते राजनेताओं के विचार बदल जाते हैं। क्षेत्र में जब वे आते हैं तो दशा-दिशा देखकर उनके दिल में हमदर्दी हिलोरे मारने लगती है और बस, वोट प्रेम से मजबूर वे नेता वादे करने को विवश हो जाते हैं। ऐसा न हो तो बीहड़ी पगडंडी एवं कटीले इलाके किसे भाते हैं। चुनाव बाद इधर देखना भी पसंद नहीं किया जाता।
आजादी के बाद से सन 1970 तक इस क्षेत्र में सेना की भर्ती का सेंटर बनता था लेकिन कुछ समय बाद यह व्यवस्था भी छीन ली गई। सौतेले व्यवहार ने क्षेत्रीय लोगों की मुसीबतें बढ़ाने का ही काम किया है। पानी, बिजली, शिक्षा व स्वास्थ्य का वही पुराना ढर्रा है। शासन द्वारा योजनाओं के लाभ से इस क्षेत्र को उपेक्षित रखा गया है। किसानों का कर्जा माफी तथा मुफ्त सिंचाई की घोषणाएं भी मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं। समस्त सहकारी समितियां मृतप्राय हैं तो सहकारी बैंक इटावा मुख्यालय पर संचालित हो रही हैं। सिंचाई का एक मात्र साधन शासकीय नलकूप हैं जो अधिकांश शोपीस बने हैं या खराब पड़े रहते हैं। नहर से आज तक पानी नसीब नहीं हुआ। मिनी नलकूप संचालकों से 80 से 100 रुपये प्रति घंटा पानी लेकर किसान बर्बाद हो रहा है।
विद्युत समस्या की मार से किसानों के साथ ही जनता भी परेशान है। ग्राम गढि़या गुलाब सिंह में आज भी डिबरी (दीपक) की रोशनी से ही काम चलाया जाता है। यह गांव ग्राम पंचायत मिहोली का मजरा है और ग्राम प्रधान भी इसी गांव से है। यहां प्राथमिक विद्यालय तो पर शिक्षक नहीं हैं। इस क्षेत्र में व्यवसाय के कोई साधन नहीं हैं और न ही बीहड़ी ग्रामों में जाने के सुगम मार्ग हैं। पीने के पानी का एकमात्र साधन सरकारी हैंडपंप तो अधिकतर खराब ही रहते हैं। केंद्रीय योजना के तहत टंकी बनाने की बात तो ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर है। सरकार किसी भी दल की रही हो यहां उपेक्षा ही मिली है।