पुलिस के गुडवर्क मामले झूठे साबित हुए
जागरण संवाददाता, एटा: जिन लोगों को पुलिस ने शातिर और गिरोहबंद अपराधी बताते हुए गैंगस्टर एक्ट में चाल
जागरण संवाददाता, एटा: जिन लोगों को पुलिस ने शातिर और गिरोहबंद अपराधी बताते हुए गैंगस्टर एक्ट में चालान किया। न्यायालय में जब सबूत का नंबर आया तो खुद पुलिसकर्मी सबूत तक नहीं जुटा सके। इसके चलते गुडवर्क झूठे साबित हो गए। जैथरा व सकीट मामलों में पुलिस के दावों को सही न पाने पर अदालत ने पिता पुत्र समेत तीन को बरी कर दिया।
थानाध्यक्ष जैथरा रामबहादुर ने 25 जुलाई 2007 को थाना क्षेत्र के गांव नगला जतू निवासी रामरतन ¨सह व उसके लड़के आशीष कुमार उर्फ ऊदल ¨सह को गिरोहबंद अपराधी बताते हुए गैंगस्टर में चालन किया था। आरोपियों पर चल रहे हत्या व जानलेवा मामले को आधार बनाया। जब मामले में सुनवाई हुई तो आरोपियों ने अपने खिलाफ चल रहे मामलों में अदालत के फैसले दाखिल किए। जिनमें अदालत द्वारा उन्हें बरी किया गया था। जबकि पुलिस अपने आरोपों को साबित करने को सबूत नहीं दे सकी।
वहीं सकीट थाने के मामले में कस्बा के मुहल्ला काजी निवासी हाफिज पुत्र अब्दुल गनी उर्फ वहीद को 1 अक्टूबर 2009 को गैंगस्टर एक्ट में पाबंद किया था। जिस पर गाय चोरी समेत अन्य आरोप लगाए गए। जब मामला सबूत पर आया तो खुद पुलिस कर्मी आरोपी के खिलाफ सबूत नहीं दे सके। जिस पर विशेष न्यायाधीश ब्रजेश कुमार शर्मा ने आरोपी को जिला कारागार से रिहा करने के लिए जेल अधीक्षक को रिहाई परवाना भेज दिया।