Move to Jagran APP

लग जाता एंटी रेबीज इंजेक्शन तो बच जाती गरीब की जान

जागरण संवाददाता, एटा: सरकारी इंतजामों की असलियत झेलने वाले एक गरीब की जान चली गई। कुत्ता काटने के बा

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Feb 2017 10:42 PM (IST)Updated: Sat, 25 Feb 2017 10:42 PM (IST)
लग जाता एंटी रेबीज इंजेक्शन तो बच जाती गरीब की जान

जागरण संवाददाता, एटा: सरकारी इंतजामों की असलियत झेलने वाले एक गरीब की जान चली गई। कुत्ता काटने के बाद जिला अस्पताल में इस युवक को एंटी रेबीज इंजेक्शन लग नहीं पाए। गरीबी के कारण वो बाजार से भी इंजेक्शन खरीद नहीं सका। झोलाछाप ने कुत्ता काटे के जख्म पर लेप लगाकर इलाज के नाम पर इसकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया। अंतत: पूरे शरीर में रैबीज का असर हो जाने के कारण युवक ने दम तोड़ दिया।

loksabha election banner

पिलुआ थाने के गांव दरिगपुर निवासी सतीश चंद्र (42) चौथा मील पर किराए पर छोटा सा ढाबा चलाते थे। तीन महीने पहले ढाबा से गांव लौटते समय कुत्ते ने उनके पैर में काट लिया। भाई सुरेंद्र ने बताया कि एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने के लिए सतीश जिला अस्पताल गए थे, लेकिन वहां बताया गया कि एंटी रेबीज वायल (एआरवी) खत्म हो गई है। दो दिन बाद भी सतीश को जिला अस्पताल से ऐसा ही जवाब मिला। सतीश की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि बाजार से महंगे इंजेक्शन खरीदकर लगवा सकते। मजबूरन झोलाछाप के पास पहुंचकर इलाज कराया। उसने घाव भरने के लिए लेप लगा दिया। सतीश ने भी धीरे-धीरे इस घातक बीमारी की आशंका दिमाग से निकाल दी।

सुरेंद्र ने बताया कि करीब एक सप्ताह पहले वे बहकी-बहकी बातें करने लगे। बुखार आया और पानी से डर लगने लगे। सामान्य बुखार समझते हुए झोलाछाप से ही उन्हें दवा दिला दी। शुक्रवार से हालत बिगड़ने लगी। सतीश ने पानी पीना तक छोड़ दिया। रात में हालत अधिक खराब हो गई। शनिवार सुबह उन्हें लेकर जिला अस्पताल पहुंचे। आपातकक्ष में तैनात डॉ. बी. सागर ने बताया कि मरीज को यहां मृत अवस्था में लाया गया था। परिजन जो लक्षण बता रहे थे, वे रेबीज के हैं।

सीएचसी-पीएचसी को मिलीं महज 500 वायल

कुत्ते और बंदर काटने के अधिकांश मामले ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में होते हैं, लेकिन इन क्षेत्रों में सरकारी इंतजामों की स्थिति और लचर है। सप्ताह भर पहले तक किसी भी सामुदायिक और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर एआरवी उपलब्ध ही नहीं थी। एक सप्ताह पहले दवा कंपनी ने सप्लाई की भी, तो महज 500 वायल की। इसमें से सभी सीएचसी-पीएचसी को 50-50 वायल उपलब्ध करा दी गई हैं। हालांकि ये जरूरत के अनुरूप नाकाफी हैं।

जिला अस्पताल में मरीजों की भीड़

हाल में जिला अस्पताल को एआरवी उपलब्ध कराई गई है। स्थिति यह है कि हर रोज 400 तक लोगों के इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं। उपलब्ध कराई गई तीन हजार में से एक हजार वायल महज दस दिन में ही खत्म हो चुकी हैं। भीड़ को देख अस्पताल प्रशासन भी परेशान है। अफसरों के माथे पर ¨चता की लकीरें हैं कि कैसे उपलब्धता बरकरार रखी जाए? पहले तो दवा कंपनी समय से आपूर्ति उपलब्ध नहीं करा रही थी, अब अस्पताल के खाते में दवा खरीद के लिए बजट नहीं है। अगर इसी रफ्तार में दवा की खपत जारी रही, तो अगले महीने से लोगों को बैरंग वापस लौटना पड़ेगा।

इनका कहना..

अस्पताल में हर समय एआरवी इंजेक्शन की उपलब्धता बनाए रखने की कोशिश की जाती है। पिछले काफी समय से दवा कंपनी की ओर से सप्लाई करने में देरी की जा रही है, जिसके चलते कभी-कभी स्टॉक भी खत्म हो जाता है। वर्तमान में दवा उपलब्ध है और पहुंचने हर पीड़ित व्यक्ति को इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं।

- डॉ. एके चतुर्वेदी, सीएमएस, जिला अस्पताल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.