मुस्लिम ध्रुवीकरण पर बसपा की निगाह
जागरण संवाददाता, एटा: बसपा का हाथी पिछले चुनाव में पीछे की ओर दौड़ गया। वर्ष 2007 के चुनाव में शानदार
जागरण संवाददाता, एटा: बसपा का हाथी पिछले चुनाव में पीछे की ओर दौड़ गया। वर्ष 2007 के चुनाव में शानदार प्रदर्शन कर बसपा ने विधानसभा की चार सीट प्राप्त कीं। इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिमट कर रह गई। मात्र एक सीट बसपा के खाते में गई। एटा-कासगंज की छह सीटों पर सपा का परचम लहराया। अब जबकि सपा की कलह धरातल पर है। ऐसे में बसपा की निगाह मुस्लिम ध्रुवीकरण पर टिकी हैं।
वर्ष 2012 में एटा की चार सीटों में एटा सदर, अलीगंज और जलेसर में बसपा दूसरे नंबर पर रही। कासगंज जिले में कासगंज शहर और पटियाली में बसपा खास प्रदर्शन नहीं कर पाई। बसपा संगठन की कमजोरी ही रही कि 2012 के चुनाव में समाजवादी पार्टी इन दो जिलों की छह सीटों पर आगे निकल गई। अमांपुर विधानसभा पर भले ही बसपा का कब्जा रहा, लेकिन बसपा से चुनाव मैदान में उतरे ममतेश शाक्य पार्टी से अलग हो गए। उनके अलग होने के बाद चर्चा यह रही कि अच्छे मतों से जीतने वाले अगर पार्टी छोड़कर गए है तो निश्चित रूप से संगठन की कमजोरी ही रही।
स्थानीय रणनीतिकारों की मानें तो बीते पांच सालों में बसपा दलीय वोट बैंक पर कब्जा बनाए रखने के प्रयास भले ही करती रही हो, लेकिन पार्टी को नए समर्थकों को जोड़ने में कोई खास उपलब्धि नहीं हो पाई। इधर मौजूदा विधानसभा चुनाव के पहले समाजवादी पार्टी की कलह तेजी से उभरी। पार्टी दो भागों में बंट चुकी। बसपा के लोगों का मानना है कि समाजवादी पार्टी की टूट के बाद निश्चित तौर पर मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण होगा।
हालांकि मौजूदा विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा कोई नया करिश्मा कर दिखाने के अंदाज में नहीं दिखती, बल्कि उसकी निगाह दलित वोट बैंक के साथ मुस्लिमों के ध्रुवीकरण की उम्मीद पर टिकी है। हालांकि पार्टी स्तर से जिले में की जा रहीं मासिक पंचायतों में एक ही बात दोहराते दिखाई देते हैं। दलित संगठित रहें, अपने अधिकारों के लिए आपस में भेदभाव न रखें, पिछड़ी जातियों के लोगों को अपना भाई बंधु मानकर उन्हें बसपा से जोड़ें।