घर-घर शराब, नहीं पहुंचे जनाब
जागरण संवाददाता, एटा: अलीगंज के जहरीली शराब कांड ने सूबे की सियासत को हिलाकर रख दिया। एटा और फर्रुखा
जागरण संवाददाता, एटा: अलीगंज के जहरीली शराब कांड ने सूबे की सियासत को हिलाकर रख दिया। एटा और फर्रुखाबाद में 43 लोगों की जान चली गई। आबकारी विभाग के मंत्री से लेकर सबसे बड़े अधिकारी और दर्जनों टीमें पड़ी रहीं, मगर नगला मुरली और नगला मदिया के शराब के ठिकाने आज भी महफूज हैं। यहां घर-घर नशे का जहर तैयार होता है, मगर इसे नेस्तनाबूद करने के लिए इतने बड़े कांड के बाद भी अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इन दोनों गावों में चल रहे शराब के ठिकाने पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
यूं तो एटा जिले में दर्जनों गांवों में कच्ची शराब का धंधा चलता है, मगर शहर से सटे दो गांव नगला मुरली और नगला मदरा कच्ची शराब के लिए कुख्यात हैं। घर-घर कच्ची शराब बनाई जाती है। नशे की तीव्रता बढ़ाने के लिए शराब में यूरिया और नौसादर मिलाया जाता है।
सूत्रों की मानें, तो पहले यहा इस धंधे को पुरुष ही करते थे, लेकिन अब महिलाएं आगे आ गई हैं। सुबह से शराब बनाने के बाद ये बेचने भी जाती हैं। पुलिस को जब भी रिकॉर्ड भरने के लिए कार्रवाई दिखाने की जरूरत होती है, तो एक दो लोगों को दो-चार लीटर शराब के साथ गिरफ्तार कर लिया जाता है। वैसे यहां के लोग पुलिस से भिड़ने में भी पीछे नहीं रहते।
33 मौतों पर भी नहीं जागे लोग
अलीगंज में जहरीली शराब से हुई 33 मौतों के बाद भी लोग पूरी तरह नहीं चेत रहे। कोतवाली देहात के गांव पंचमपुर में स्थानीय निवासी राज बहादुर (38) की मौत कच्ची शराब पीने से हो गई। मृतक के परिजनों का दावा है कि राजबहादुर ने बुधवार की सुबह कच्ची शराब पी थी इसके बाद उल्टियां हुईं और उसकी मौत हो गई। मृतक के पुत्र कुलदीप ने बताया कि गांव के ही कुछ लोग शराब बनाते हैं। आए दिन लोग ये शराब पीकर बीमार पड़ते हैं।
कभी भी हो सकता है अलीगंज कांड
अलीगंज में श्रीपाल के अड्डे से बेची गई जहरीली शराब से आए तूफान की तरह कभी भी मौत का बवंडर आ सकता है। घर-घर बनाई जाने वाली शराब में यूरिया, नौसादर और अन्य केमिकल मिलाए जाते हैं। यदि किसी की मात्रा ज्यादा हो गई तो शराब जहर बन सकती है और अलीगंज की तरह कांड फिर से हो सकता है।
कुटीर उद्योग का ले चुका रूप
कच्ची दारू के कुटीर उद्योग के रूप में पनपने के कई कारण हैं। पहला कारण है कम लागत में भारी मुनाफे का होना। दूसरा इस धंधे में प्रयुक्त की जाने वाली कच्ची सामग्री क्षेत्र में आसानी से उपलब्ध है। तीसरा आबकारी व पुलिस द्वारा इस अवैध उद्योग पर नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम न उठाया जाना है। कच्ची शराब सरकारी ठेकों पर बिकने वाली देसी शराब के मुकाबले काफी सस्ती होती है।
'अवैध शराब का कारोबार करने वाले चिन्हित किए जा रहे हैं। इन दिनों अभियान चल रहा है। कहीं भी यह कारोबार नहीं होने दिया जाएगा।'
विसर्जन सिंह यादव, एएसपी