एटा: गंदगी और धूल, स्मारकों पर शूल
जागरण संवाददाता, एटा: बुत अगर बोलते होते, तो अपनी दुर्दशा पर जरूर आंसू बहाते। इतिहास लिखने वालों ने
जागरण संवाददाता, एटा: बुत अगर बोलते होते, तो अपनी दुर्दशा पर जरूर आंसू बहाते। इतिहास लिखने वालों ने कभी नहीं सोचा होगा कि जिस रास्ते से गुजरकर लोग महापुरुषों की मूर्तियों और स्मारक तक जाएंगे, वह गंदगी से इस कदर अटे होंगे। एटा और कासगंज के ऐतिहासिक स्मारक और धार्मिक स्थल गंदगी और धूल की ऐसी ही परत से ढके हैं, लेकिन जिम्मेदारों ने इस ओर से आंखें मूंद ली हैं।
घंटाघर : गंदगी में कैद गांधीजी
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इतिहास के पन्नों में दर्ज यह वही घंटाघर है, जिसे शहर का दिल कहते हैं। इसके अंदर महात्मा गांधी की आदमकद सफेद संगमरमर की मूर्ति लगी है, जो गंदगी के थपेड़ों से जूझकर पीली पड़ गई है। मूर्ति के ठीक नीचे कोने में कचरे के ढेर लगा है, जो कभी नहीं उठता। ऊपर से गोलचक्कर पर सब्जी-पूड़ी बेचने वालों और ठेले वालों ने गांधी जी को बंधक सा बना लिया है। यही हाल घंटाघर तक पहुंचने वाले रास्तों का है, जो गंदगी से अटे पड़े हैं।
हाथीगेट: दाएं गंदगी, बाएं गंदगी
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हाथी गेट के अंदर दाखिल होते ही एक छोटे से परकोटे से घिरी सुभाष चंद बोस की इस मूर्ति पर चौतरफा पक्षियों की बीट है। मूर्ति के आसपास कचरा पड़ा है। रही बची कसर मूर्ति को घेरकर खड़े ठेले-खोमचों वालों ने पूरी कर दी है। मूर्ति तक पहुंचने के रास्ते बेहद व्यस्त और गंदे हैं।
वन चेतना केंद्र: पोखर, धूल और कचरा ही पहचान
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जीटी रोड से ओवरब्रिज के किनारे से जाने वाला रास्ता रेतीला है। केंद्र तक पहुंचने से पहले ही आप धूल में सन जाएंगे। इस केंद्र में न तो कहीं आच्छादित वन हैं और न ही यहां पहुंचकर मन में चेतना जागृत होती है। यहां लगी वीरांगना अवंती बाई की मूर्ति पर धूल की परतें दिखाई दे रहीं हैं। मूर्ति के नीचे की जमीन कच्ची है। अवंतीबाई को मानने वाले इससे अनभिज्ञ नहीं, मगर प्रशासन के साथ वह भी खामोश हैं। तालाब दलदल जैसा है, जो गंदगी से बजबजा रहा है।
नदरई: ऐतिहासिक विरासत पर दाग ही दाग
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नदरई झाल का पुल और भीमसेन का घंटा ऐतिहासिक विरासत है। इन्हें देखने के लिए दूरदराज से लोग पहुंचते हैं, लेकिन रास्ते बेहद गंदे हैं। पुल पर जमी सिल्ट में घास उग आई है। भीमसेन का घंटा देखने जाने वाले कचरे के ढेर से होकर गुजरते हैं। नदी एवं नहर के बीचोबीच यहां कोठरियां बनी हैं, जिनमें मकड़ी के जाले और चमगादड़ों का वास है। यहां पहुंचने के रास्ते से लेकर सीढि़यों तक गंदगी का अंबार है।
सोरों: हरि की पैड़ी की ये दुर्दशा
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बड़ी आस्था और श्रद्धा के साथ दूर दराज से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की टोली हरि की पैड़ी को देखते ही समझ जाती है कि यहां का प्रशासन और लोग आस्था के इस केंद्र के लिए कितने गंभीर हैं। हरिपदी गंगा में इतनी ज्यादा सिल्ट है कि देखकर लगता है कि पानी पर ग्रीन कारपेट बिछी है। सीढि़यों पर फिसलन है और पटरी पर सड़ी-गली चीजें पड़ी रहती हैं। यहां तक पहुंचने वाले रास्ते पर कहीं गोबर, तो कहीं कचरे के ढ़र दिखते हैं। हालात इतने खराब हैं कि अगर आस्था नहीं होती, तो यहां कोई खड़ा भी नहीं होता।
सभी बनें नेक काम के भागीदार
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'सभी ऐतिहासिक धरोहर हमें विरासत में मिली हैं। जिस तरह हम अपने घरों को साफ रखते हैं, उसी तरह महापुरुषों के मूर्ति स्थलों और स्मारकों को भी स्वच्छ रखें। गंदगी है तो जिम्मेदार लोगों के संज्ञान में लाएं। स्वच्छता अभियान से खुद जुड़ें और अन्य को भी जोड़ें।'
राजवीर सिंह 'राजू भ्ैाया'
सांसद, एटा
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'सभी नागरिक सफाई को अपना काम समझकर करें। यह पुनीत और नेक कार्य है। जगह साफ होगी, तो साफ-सुथरा माहौल भी बनेगा। इन दिनों निर्मल भारत अभियान भी चल रहा है उससे ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़ें।'
सेल्वा कुमारी जे
जिलाधिकारी एटा
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'स्वच्छता का हमारे जीवन में बेहद महत्व है। जहां हम रहते हैं, उस जगह को साफ सुथरा बनाने की जिम्मेदारी भी अपनी ही बनती है। सफाई अभियान से जरूर जुड़ें। ऐतिहासिक धरोहरों में गंदगी न करें। झाल का पुल ऐतिहासिक है। निरीक्षण करेंगे, जो उचित होगा, प्रस्ताव तैयार कराएंगे। व्यवस्थाएं बेहतर कराई जाएंगी। '
जेपी त्रिवेदी
जिलाधिकारी, कासगंज