अश्वस्थामा की तपोस्थली है दीर्घेश्वरनाथ मंदिर
देवरिया : मझौलीराज रियासत से दो किमी उत्तर स्थित दीर्घेश्वरनाथ शिवभक्तों के आस्था का केंद्र है। यहां
देवरिया : मझौलीराज रियासत से दो किमी उत्तर स्थित दीर्घेश्वरनाथ शिवभक्तों के आस्था का केंद्र है। यहां पूजन-अर्चन करने वाले श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होती हैं। महाशिवरात्रि हो या अधिकमास यहां श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ती है। मंदिर की मान्यता है कि यहां शिव¨लग स्वयंभू है। अधिकमास के अलावा श्रावण मास में यहां एक माह तक मेला का माहौल रहता है। श्रद्धालु यहां हर रोज जल चढ़ाने आते हैं।
इस स्थान की महत्ता के बारे में कहा जाता है कि कौरव एवं पांडव के गुरु द्रोणाचार्य एवं उनकी पत्नी ने संतान प्राप्ति के लिए इस स्थान पर शिव की आराधना की थी। उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया तथा वरदान दिया कि उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी। इसके फलस्वरूप अश्वस्थामा का जन्म हुआ। बालक अश्वस्थामा ने भी उसी स्थान पर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें दीर्घायु होने का वरदान दिया। जिस स्थान पर भगवान शिव का ¨लग है उसी स्थान पर प्रकट होकर शिव ने अश्वस्थामा को दीर्घजीवी होने का आशीर्वाद दिया था। इसलिए कालांतर में इस पावन स्थान को दीर्घेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता है। मंदिर का निर्माण 1965 में बंगाली बाबा ने कराया था। मंदिर पर हर रोज जहां सैकड़ों की भीड़ लगती है वहीं महाशिवरात्रि तथा श्रावण मास में श्रद्धालुओं का तांता लगता है। मंदिर निर्माण के लिए बंगाली बाबा ने अन्न जल सब छोड़ तपस्या किया था। भगवान शिव ने साक्षात प्रकट होकर उन्हें मंदिर का छज्जा तैयार कराने का आशीर्वाद दिया था। भगवान शिव द्वारा भक्तों को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देने के कारण इस मंदिर को दीर्घेश्वरनाथ महादेव के नाम से जाना जाता है। भक्त बताते हैं कि अश्वस्थामा इस मंदिर में रात के तीसरे पहर में पूजा करने आता है। रात में मंदिर बंद हो जाता है और जब सुबह खोला जाता है तो यहां शिव¨लग पर पूजन सामग्री चढ़ी मिलती है।