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जहाजों का रास्ता रोकेगी सरयू की रेत

देवरिया: मुगल हुकूमत से लेकर अंग्रेजी शासन तक पूर्वाचल के सबसे समुन्नत अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक कें

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Jun 2017 11:32 PM (IST)Updated: Mon, 19 Jun 2017 11:32 PM (IST)
जहाजों का रास्ता रोकेगी सरयू की रेत

देवरिया: मुगल हुकूमत से लेकर अंग्रेजी शासन तक पूर्वाचल के सबसे समुन्नत अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र रहे बरहज की उदास फिजां में फिर से रंगत लौटने वाली है। केंद्र सरकार द्वारा पुराने जल मार्ग को फिर से चालू करने की परियोजना में सरयू तथा राप्ती नदी को शामिल करने तथा केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा बरहज में जल मार्ग का सर्वे करने के बाद उम्मीदें परवान चढ़ती दिख भी रही है। सरकार की मंशा परवान चढ़ी तो बरहज के घाटों पर फिर से जहाजों का बेड़ा दिखेगा। देश के अन्य शहरों के लिए सरयू नदी के रास्ते जहाजों का आवागमन शुरु हो जाएगा और बरहज के विकास का द्वार भी खुलेगा। हालांकि सरयू नदी में जमा बालू का टीला अवरोध के रूप में खड़ा है।

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16 जून को परिवहन एवं जहाजरानी मंत्रालय की चार सदस्यीय टीम ने स्टीमर से दोहरीघाट से बरहज तक के जलमार्ग का निरीक्षण किया। कई जगह नदी की रेत में स्टीमर फंसा। टीम के सदस्यों ने बताया कि नदी की गहराई काफी कम है। जगह-जगह रेत के टीले दिखाई दे रहे हैं। स्थिति से मंत्रालय को अवगत कराया जाएगा। नदी की सफाई किए बिना जल मार्ग शुरू करना आसान नहीं होगा।

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बालू खनन पर प्रतिबंध से ऊंची हुई नदी

भूकंप की ²ष्टि से सरयू का तटीय इलाका जोर 4 में होने के कारण प्रशासन ने दोहरी घाट से लेकर भागलपुर तक सरयू नदी से बालू खनन पर प्रतिबंध लगा दिया है। बालू खनन पर प्रतिबंध से नदी में साल दर साल बालू की परत जमती गई। सफाई न होने से नदी की गहराई कम होती गई है। बरहज से लेकर दोहरीघाट तक नदी में दर्जन भर स्थानों पर बालू जमा होकर टीला बन गया है। अगर प्रशासन खनन पर प्रतिबंध में ढील देते हुए नदी में नाव के जरिए परंपरागत तरीके से बालू खनन की अनुमति दे तो नदी फिर से गहरी हो सकती है।

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प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र

मुगल काल के सेलहवीं सदी में बरहज का व्यापारिक केंद्र के रुप में अभ्युदय हुआ। शुरु में लोहे के बर्तन का निर्माण हुआ। धीरे-धीरे शुद्ध भारतीय चीनी (खांडसारी), शीरा तथा लकड़ी से बने सामानों का निर्माण और व्यवसाय शुरु हुआ। अंग्रेजी शासन के दौरान बरहज का व्यापार चरमोत्कर्ष पर था। इसकी पहचान प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र के रुप मं बन गई। ब्रस, लोहा और चीनी उद्योग प्रमुख उद्योग बन गए। यहां 436 चीनी मिलें थी। उत्तर प्रदेश गजेटियर में भी इसका उल्लेख मिलता है। अंग्रेजों ने अपने गजेटियर में कानपुर टू पटना बिट्विन इन्डस्ट्रीयल प्लेस आफ द बरहज में बरहज के व्यापारिक प्रभुत्व का उल्लेख किया है।

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इन देशों से होता था व्यापार

बरहज के जहाट घाट, कुटी घाट, थाना घाट, लालचंद घाट आदि घाटों पर आरएमएच कंपनी वाष्पीकृत पानी के जहाजों व नावों पर लाद कर नार्वे, मारीशस, गोर्नियो, वर्मा, भूटान, बंगलादेश, इंगलैंड, जापान, त्रिनीदाद, पाकिस्तान, अफ्रीका, जावा, सुमात्रा, फारमोसा, चीन आदि देशों के लिए सामान जाता था और वहां से जहाजों द्वारा खाद्य सामग्री तथा विदेशी मुद्रा लाई जाती थी। व्यापार सोने व चांदी के सिक्कों से होता था।

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