अनुपयोगी पशु बन रहे किसानों के दुश्मन
देवरिया: केंद्र सरकार द्वारा अनुपयोगी पशुओं की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने से पशुपालकों की मुश्किलें बढ
देवरिया: केंद्र सरकार द्वारा अनुपयोगी पशुओं की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाने से पशुपालकों की मुश्किलें बढ़ गई है। ऐसे पशुओं से फसलों के नुकसान की संभावना प्रबल हो गई है, वहीं चर्मकार समुदायों का व्यवसाय पूरी तरह से प्रभावित हो गया है। अनुपयोगी पशुओं को पशुपालक दूसरे गांव में लेकर जाकर छोड़ आ रहे हैं। सरकार को ऐसे पशुओं के लिए पशु आश्रम स्थापित करने की आवश्यकता है। पशुपालक महंगाई को लेकर भी परेशान हैं।
सलेमपुर में स्लाटर हाउस बंद होने से अनुपयोगी पशुओं की संख्या में इजाफा हुआ है। जब स्लाटर हाउस चलता था तो आवारा पशुओं की संख्या में काफी कमी आई थी, लेकिन इधर पशुओं की संख्या में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी होनी शुरू हो गई है। महंगाई के युग में पशुओं को चारा की व्यवस्था करना मुश्किल काम है। दूध देने वाले पशु जब दूध देना बंद कर दे रही है तो पशुपालक उन बछड़ों को रखने की बजाय छूट्टा छोड़ दे रहे हैं, जो फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
भागलपुर निवासी विनय कुमार मिश्र कहते हैं कि किसान अभी फसलों को तैयार करने में परेशान है। फसल को किसी तरह उपजा रहे हैं, ऐसे में आवारा पशुओं से किसानों को झेलना पड़ रहा है। सरकार को ऐसे पशुओं को इंतजाम करना चाहिए, तभी इस कानून का महत्व है। धरमेर गांव के आत्म प्रकाश मिश्र कहते हैं कि भूसा की महगांई के चलते पशुपालक जब गाय या भैंस दूध देना बंद कर दे रही है तो उसके बछड़ों को सड़कों पर छोड़ दे रहे हैं। पशुपालक तेज बहादुर यादव कहते हैं कि अब तो वृद्ध हो चुके पशुओं को बेचने संकट पशुपालकों के सामने उत्पन्न हो गया है। पहले पशु मरते थे तो चमड़ा के कारोबारी उसे ले जाते थे। आज पैसा देने के बाद भी मरे हुए पशुओं को नहीं हटा रहे हैं। जमुआ निवासी चमड़ा व्यवसायी रूदल प्रसाद का कहना है कि चमड़े का दाम भी अब नहीं मिल रहा है। इसके चलते हम लोग अब यह धंधा बंद करने जा रहे हैं। पहले एक पशु का चमड़ा दो से ढाई हजार रुपये में बिकता था, लेकिन वहीं चमड़ा दो से ढाई सौ रुपये में बिकने लगा है, इससे व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं।