Move to Jagran APP

जीवत्पुत्रिका व्रत रख माताओं ने मांगी पुत्र की लंबी उम्र

देवरिया : शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में माताओं ने पुत्रों की लंबी आयु के लिए जीवित्पुत्रिका व्र

By Edited By: Published: Fri, 23 Sep 2016 11:07 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2016 11:07 PM (IST)

देवरिया : शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में माताओं ने पुत्रों की लंबी आयु के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत रखकर कामना की। माताओं ने नदियों में स्नान कर विधि-विधान से पूजन-अर्चन किया। साथ ही पुत्र के दीर्घायु की कमाना की तथा संतान के सुखी जीवन के लिए कथा सुनी।

loksabha election banner

शहर के हनुमान मंदिर, न्यू कालोनी स्थित शिव मंदिर, रामगुलाम टोला स्थित दुग्धेश्वर नाथ शिवमंदिर, भीखमपुर रोड हनुमान मंदिर, टाउन हाल स्थित राम जानकी मंदिर, राघवनगर स्थित दुर्गा मंदिर, अमेठी माई मंदिर, लाहिलपार दुर्गा मंदिर, पुलिस लाइन स्थित मंदिर के अलावा उधर ग्रामीण क्षेत्रों के मंदिरों में भी माताओं ने पूजन-अर्चन कर कथा का रसपान किया।

बरहज कार्यालय के अनुसार पुत्र की लंबी आयु एवं मंगल के लिए माताओं ने जीवित्पुत्रिका व्रत (जिउतिया) रखा। नदी व जलाशयों में स्नान कर महिलाओं ने कथा सुनी और संतान के सुख-समृद्धि व लंबी आयु की कामना की। दिन में दो बजे से ही सरयू नदी स्नान करने के लिए व्रती महिलाओं की भीड़ जुटने लगी। शाम पांच बजे तक स्नान चलता रहा। घाटों पर पुलिस द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। स्नान के बाद महिलाओं ने नदी तट और घर के आंगन को लीप कर बैरियार (एक प्रकार का पौधा) जमीन में गाड़ कर शालिवाहन व जीमूतवाहन की कुश की प्रतीकात्मक प्रतिमा रख नैवेद्य से पूजन करने के बाद कथा सुना।

--------

महाभारत काल से जुड़ा है व्रत

जीवित्पुत्रिका व्रत और इसकी कथा महाभारत काल से जुड़ी है। महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य की मौत से अश्वत्थामा काफी आक्रोशित था और बदले की आग में जल रहा है। जिस कारण उसने पांडवों के शिविर में चुपके से घुस कर द्रौपदी के सोते हुए पांच पुत्रों को पांडव समझ कर मार डाला। इस अपराध के लिए अर्जुन ने उसे बंदी बना लिया और उसके मस्तक से दिव्य मणि छीन ली। इस घटना से खार खाए अश्वत्थामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, जिसे निष्फल करना नामुमकीन था और उत्तरा के पुत्र का जन्म लेना भी आवश्यक था। उसकी सुरक्षा के लिए भगवान कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसे गर्भ में पुन: जीवित किया। गर्भ में मर की जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे चल कर यही राजा परीक्षित बना। तब से ही इस व्रत को किया जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.