Move to Jagran APP

बरामद पशु बेचने के आरोप में मुकदमा

देवरिया : तरकुलवा पुलिस ने नाटकीय अंदाज में ऐसे सोलह लोगों के खिलाफ मुकदमें की कार्रवाई की है, जिन प

By Edited By: Published: Thu, 25 Aug 2016 10:59 PM (IST)Updated: Thu, 25 Aug 2016 10:59 PM (IST)
बरामद पशु बेचने के आरोप में मुकदमा

देवरिया : तरकुलवा पुलिस ने नाटकीय अंदाज में ऐसे सोलह लोगों के खिलाफ मुकदमें की कार्रवाई की है, जिन पर बरामद पशु बेचने का आरोप है। आरोपी वही लोग हैं, जिन्हें पुलिस कड़ी मशक्कत के बाद पशु रखने को तैयार करती रही है। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद नए सिरे से अब यह सवाल उठने लगे हैं कि तस्करों के हाथ से भारी तादाद में बरामद और पशु इस वक्त भी उन लोगों के पास मौजूद हैं, जिनके हाथ बेजुबानों को महीने पहले सौंपा गया? सूत्रों की मानें तो मामले की जांच बाद दूध का दूध व पानी का पानी हो जाएगा, क्योंकि पशुओं को बेचने के इस खेल में स्वयं खाकी की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।

loksabha election banner

तरकुलवा पुलिस के मुताबिक थानाक्षेत्र के ग्राम परसौनी निवासी रामअवतार पुत्र निसरजई समेत सोलह लोगों पर आरोप है कि उन्होंने उन पशुओं को गैर कानूनी तरीके से दूसरे के हाथ बेच दिया, जिन्हें पुलिस ने बरामद कर कानूनी प्रकिया के तहत उन्हें सौंपा। तरकुलवा थानाध्यक्ष की तहरीर पर आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 406 के तहत अभियोग पंजीकृत हुआ है। बहरहाल इस सनसनीखेज प्रकरण के उजागर होने के बाद लोगों के जेहन में सवाल उठना तो लाजमी है कि सैकड़ों की तादाद में पशु तस्करों के कब्जे से पकड़े जाने वाले अन्य पशुओं की इस वक्त दशा क्या है? जिन लोगों के हाथ पशु सौंपे गए, उनके कब्जे में बेजुबान आज भी है या फिर उन पशुओं का भी कुछ ऐसा ही हर हुआ है। सूत्रों की मानें तो तस्करों से बरामद पशुओं के हस्तांतरण व उनकी देखभाल में बड़ा खेल होता है। पुलिस जिन पशुओं की बरामदगी को लेकर ढिढोरा पीटती है, उनकी परवरिश या फिर देखभाल के लिए उस तरह की संवेदनशीलता नहीं दिखाती। हालात यह होता है कि किसानों के हाथ पशु सौंपकर वह भी चैन की नींद सो जाती या फिर उधर नजर फेरना मुनासिब नहीं समझती। पुलिस की शिथिलता भांप लेने के बाद किसान भी ऐसे पशुओं को बेच देते हैं। क्योंकि इन पशुओं की देखभाल व पालन पोषण में उनका स्वयं का आटा गीला होता है। चूंकि तस्करी के दौरान पकड़े जाने वाले अधिकांश पशुओं की दशा दयनीय होती है। ऐसे में उनके उपर रुपये लुटाने को किसान पुलिस के दबाव पर भारी मन से ही तैयार होता है। किसानों की मानें तो इन पशुओं की परवरिश के लिए उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती। जबकि गौशाला के संचालक पुलिस की पीड़ा को सुनना तो दूर कान देना भी गंवारा नहीं समझते। ऐसे में तस्करी के पशुओं की भारी खेप तस्करों के हाथ दोबारा लग जाती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.