कछारवासियों के विरासत में बाढ़ से तबाही
देवरिया : आजादी के छह दशक गुजर जाने के बाद भी कछारवासियों पर वादा ही भारी रहा। जिम्मेदार किए गए वाय
देवरिया : आजादी के छह दशक गुजर जाने के बाद भी कछारवासियों पर वादा ही भारी रहा। जिम्मेदार किए गए वायदा से मुकर जाते हैं। आलम यह है कि कछार क्षेत्र के दोआबा के 52 व कछार के 64 गांवों के लोगों को विरासत में आंसू मिला है। हर वर्ष इन्हें बाढ़ के दंश का शिकार होना पड़ता है। गौरतलब है कि वर्ष 1998 की बाढ़ में रुद्रपुर कछार क्षेत्र के सभी बंधे एक-एक कर टूट कर पानी में समाहित हो गए थे। लोगों को एक मात्र साधन नाव ही सहारा रह गया था, जिससे होकर लोग अपने गांवों में आते और जाते थे। उन दिनों भी समाज में विकास का दम भरने वाले नेता उन तक पहुंचकर घड़ियाली आंसू बहाते थे। जून आने में एक माह का समय शेष रह गया है। हालत यह है कि जर्जर तटबंध आज ग्रामीणों को मुंह चिढ़ा रहे हैं। सरकार का दावा भी क्षेत्र में तार-तार होता दिख रहा है। कोरम के तौर पर ¨सचाई विभाग हर वर्ष बांधों की मिट्टी को खूरच कर कागज में कार्य दिखाकर लाखों-लाखों रुपया डकार लिया जाता है। विभाग की कारस्तानी से लोग अच्छी तरह से वाकिफ हैं। पर वे कर भी क्या सकते। बता दें कि दर्जनों रेगूलेटर बने हैं। परन्तु उनकी सफाई भी समय से नहीं करायी जाती। न ही उनकर ग्री¨सग होती है। सबसे अधिक संवेदनशील राप्ती नदी पर स्थित गायघाट है। जो हर वर्ष बाढ़ के थपेड़ों से दरक रहा है। नदी इस गांव को चार बार लील चुकी है। फिर इसकी हालत जस की तस है। यहां किसानों की आधा से अधिक खेती सेमरा के उस पार गोरखपुर जनपद में चली गई है। ग्रामीण राममनोहर यादव, सत्यवान यादव, सदानंद ¨सह, झब्बू यादव, धनंजय शुक्ल, रामविलास पांडेय, सुनील शुक्ल, सीताराम यादव, कपिलदेव ¨सह, दिनेश राव, जय ¨सह, साधुशरण यादव, संजय यादव आदि ने बताया कि हर वर्ष हम लोग बाढ़ का कहर झेलने को मजबूर रहते हैं। क्षेत्र के संवेदनशील बंधों में शूमार पलिया-छपरा, केवटलिया-महेन, नकईल-पिड़रा सहित आधा दर्जन बंधों की हालत ज्यों की त्यो है।