विस्फोटों के ढेर से उठे सवाल, मौतों का गुनहगार कौन?
देवरिया : पटाखा फैक्ट्री में भयानक विस्फोट से एक साथ दो लोगों की मौत हो गई। खून से सना घटनास्थल और
देवरिया : पटाखा फैक्ट्री में भयानक विस्फोट से एक साथ दो लोगों की मौत हो गई। खून से सना घटनास्थल और वहां पसरा मलबा हादसे के पीछे पुलिस व प्रशासनिक लापरवाही की कहानी चीख-चीख कर बयां कर रहा है? यक्ष प्रश्न यह है कि वारदात के असल गुनहगार आखिर कौन हैं? क्या उनके चहेरे बेनकाब होंगे? पुलिस व प्रशासनिक कार्यप्रणाली की पोल परत दर परत खोलने वाली इस घटना के दोषियों को क्या सजा मिलेगी? या एक बार फिर कलम के बाजीगर बरी होने में कामयाब रहेंगे? ऐसे सुलगते सवालों के जवाब तलाशे जाने लगे हैं। इन सवालों से पार पाना प्रशासन के आसान नहीं होगा।
मइल थाना क्षेत्र स्थित पिपरा मिश्र गांव में बुधवार को सुबह जब पटाखा फैक्ट्री में विस्फोट हुआ तो ग्रामीण दहशत में आ गए। विस्फोट की गूंज चार किमी की परिधि में सुनी गई। बड़ी अनहोनी की आशंका सहज थी। लोग घटनास्थल की ओर भागे। नजारा डराने वाला था। बारूदी विस्फोट से एक पूरा मकान जमींदोज हो चुका था। मलबे के ढेर से शव को बाहर निकाले जाने की कवायद हो रही थी। आग पर काबू पाने के मूलभूत संसाधन पटाखा फैक्ट्री के इर्द-गिर्द मौजूद नहीं थे। निजी टयूबवेल से आग पर काबू पाया गया। दो शव बरामद हुए। इनकी पहचान पटाखा व्यवसायी सुभाष धारिकार व सन्नी के रूप में हुई। कहा गया कि दोनों रिश्तेदार हैं। पटाखा बनाते समय दोनों हादसे का शिकार हुए।
घटनास्थल पर जुटे पुलिस व प्रशासनिक अफसरों ने पहले तो अपनी जुबान सिल ली। कुरेंदने पर कहा कि सुना जा रहा है कि व्यवसायी को पटाखा फैक्ट्री चलाने की अनुज्ञप्ति दी गई है, पर पुष्टि से कतराते रहे। मान भी लें कि अनुज्ञप्ति के आधार पर ही पटाखे का निर्माण हो रहा था, तो सवाल यह है कि तय मानक के विपरीत विस्फोटकों के अकूत भंडारण की अनुमति व्यवसायी को किसने दी? पटाखा फैक्ट्री की निगरानी स्थानीय पुलिस ने क्यों नहीं की? घटनास्थल व शव के उड़े चिथड़े प्रमाण हैं कि पटाखा फैक्ट्री में भारी विस्फोट हुआ। वहां भारी मात्रा में विस्फोटक जमा होने की भनक अग्निशमन विभाग व मुकामी पुलिस को क्यों नहीं लगी। या फिर पर्दे के पीछे की कहानी कुछ और है। हालात तो ऐसे ही संकेत दे रहे हैं। ग्रामीणों की मानें तो मोटी रकम लेकर जिम्मेदारों ने दायित्व से किनारा कस लिया। रोंगटे खड़े करने वाली यह घटना उनकी लापरवाही का ही परिणाम है। स्थानीय पुलिस की भूमिका जहां संदेह के घेरे में है, वहीं अग्निशमन विभाग की बहुचर्चित कार्यशैली व उच्चाधिकारियों का धृतराष्ट्र रूपी रवैया भी सवालों के घेरे में है।
क्या कहता है कानून
पटाखा कारोबार के लिए अनुमति प्रशासनिक अफसर देते हैं। प्रार्थी के आवेदन पर अग्निशमन विभाग एनओसी जारी करता है। बगैर एनओसी के कारोबार को हरी झंडी नहीं मिलती। एनओसी से पूर्व आवेदक को अग्निशमन के सारे मानक पूरे करने होते हैं। व्यवसायिक प्रतिष्ठान के इर्द-गिर्द अग्निशमन के समुचित उपाय होते हैं। अग्निशमन विभाग की संस्तुति पर प्रशासनिक अमला कारोबार की अनुमति देता है।
मुझे कुछ नहीं पता : एफएसओ
पटाखा व्यवसायी के पास अनुज्ञप्ति होने के सवाल पर एफएसओ सुरेंद्र चौबे ने साफ पल्ला झाड़ लिया। उन्होंने कहा कि लाइसेंस जिला प्रशासन जारी करता है। जवाब प्रशासनिक अफसर ही देंगे। यहां तक कि श्री चौबे इस सवाल का जवाब देने से भी कतरा गए कि अग्निशमन विभाग ने व्यवसायी को एनओसी जारी किया है या नहीं।
एफएसओ से तलब की है फाइल
घटना के बावत क्षेत्राधिकारी बरहज ने कहा कि धराशाई मकान व व्यवसायी के चिथड़े उड़ना इस बात का प्रमाण है कि मौके पर मानक के विपरीत विस्फोटक जमा थे। रहा सवाल व्यवसायी के पास अनुज्ञप्ति होने का, तो इसकी छानबीन की जा रही है। एफएसओ से फाइल तलब की गई है।
प्रशासनिक अफसर जिम्मेदार : एएसपी
घटना के बावत एएसपी रूचिता चौधरी ने कहा कि पटाखा व्यवसायी के पास अनुज्ञप्ति है या नहीं इस सवाल का जवाब पुलिस नहीं बल्कि प्रशासनिक अफसर देंगे। घटना से पुलिस का कोई सीधा सरोकार नहीं।
कटघरे में एलआइयू
मईल के पिपरा मिश्र गांव में स्थित पटाखा फैक्ट्री में विस्फोटकों की भारी मौजूदगी की भनक स्थानीय अभिसूचना इकाई को भी नहीं लगी। शासन व प्रशासन की आंख कहे जाने वाले विभाग के कर्मचारी मानों कुंभकर्णी नींद में हों। यूं कहें कि फैक्ट्री में विस्फोटकों की भारी मौजूदगी से अनजान पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी एलआइयू की विफलता के शिकार बने तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।