आठ हजार रुपये खर्च कर शिवपूजन बने थे विधायक
बबुरी (चंदौली): चुनाव आयोग ने भले ही विधानसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की खर्च सीमा 28 लाख तय कर
बबुरी (चंदौली): चुनाव आयोग ने भले ही विधानसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की खर्च सीमा 28 लाख तय कर दी है। पर शायद ही कोई नेता ऐसा होगा जो इतनी धनराशि में चुनाव लड़ता हो। चुनाव लड़ने वाले नेता भले ही अपना खर्च तय सीमा में दिखाते हैं पर करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव लड़ते हैं। पर पूर्व में लड़े गए चुनाव आज भी इतिहास बने हुए हैं। बात करें शिवपूजन राम की तो उन्होंने मात्र 8 से 10 हजार रुपये खर्च कर विधायकी का चुनाव जीता।
पहली बार 1991 में केवल 8 हजार रुपये खर्च कर वे विधायक बन गए थे। दूसरी बार 1996 में उनके चुनाव का खर्च महज 15 हजार आया था। यह जानकारी खुद देते हुए शिवपूजन राम बताते हैं कि चुनाव में आज बेतहाशा खर्च हो रहा है। प्रत्याशी कई कई वाहनों से घूमते रहते हैं और कई तरह से खर्च भी करते हैं। अगर ठीक से जोड़ा जाए तो यह खर्च चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित खर्च कई गुना अधिक माना जाएगा।
व्यक्तित्व पर होता था चुनाव
शिवपूजन राम के दो बार विधायक रहने के बावजूद भी उनके व्यवहार व कार्य में कोई परिवर्तन नहीं आया है। पूर्व विधायक ने बताया पांच मुख्यमंत्री के कार्यकाल में वे विधायक रह चुके हैं। पहले चुनाव व्यक्तित्व के आधार पर होता था। पैसा का कोई मतलब नहीं था। नेता का चयन कार्यकर्ताओं के बीच से होता था। जमीनीस्तर का कार्यकर्ता की चुनाव लड़ता था। यदि ऐसा न होता तो गरीब परिवार में परवरिश होने के साथ साथ शिक्षक की नौकरी करते हुए 1991 में चुनाव लड़े और महज 8 हजार रुपये खर्च कर विधायक बन गए। वहीं वर्ष 1996 में महज 15 हजार रुपये खर्च कर चुनाव जीतकर पुन: विधानसभा में पहुंचने का मौका मिला।
मोटरसाइकिल से जनसंपर्क
उस समय वाहनों का इतना प्रचलन नहीं था। मोटरसाइकिल से घर-घर जाकर कार्यकर्ताओं व मतदाताओं से संपर्क होता था और एक दूसरे के सुख दुख में सहभागी बनते थे। वर्ततान राजनीजिक परिवेश में माफियाओं का प्रवेश हो जाने के चलते चुनाव की रूपरेखा बदल गई है। पहले नेता और कार्यकर्ता में सेवा का भाव था। वर्तमान में कार्यकर्ता व प्रत्याशी दोनों पेशोंपेश में रहते हैं कि चुनाव से हमें क्या हानि व लाभ होगा।
चुनाव को 10 लाख बहुत
आज के परिवेश में यदि उन्हें चुनाव लड़ना है तो 10 लाख रुपये से कम खर्च में वे चुनाव लड़ लेंगे। चुनाव आयोग ने चुनाव में खर्च की सीमा 28 लाख रुपये रखी है, यह काफी है। इससे दिक्कत महज राजनीति में किस्मत आजमाने वाले और पैसे के बल पर चुनाव में अपनी वैतरणी पार लगाने वाले प्रत्याशियों को हो सकती है। निर्वाचन आयोग ने अधिक से अधिक कैशलेस चुनाव की बात की है, जो काफी सराहनीय है। इससे धनबल के आधार पर चुनाव जीतने वालों पर नकेल लगेगा और स्वच्छ छवि के व्यक्ति चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे।