शौर्य गाथाओं का गवाह रहा है बीबी नगर का सैदपुर क्षेत्र
बीबीनगर(बुलंदशहर) : जब देश की रक्षा ओर सुरक्षा का जिक्र होता है तो जनपद के सैदपुर क्षेत्र की चर्चा अ
बीबीनगर(बुलंदशहर) : जब देश की रक्षा ओर सुरक्षा का जिक्र होता है तो जनपद के सैदपुर क्षेत्र की चर्चा अवश्य होती है। यह अनायास ही नहीं अपितु प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल की लड़ाई तक प्रत्येक संघर्ष में सिद्ध होता रहा है। जब जब देश की आन बान और अस्मिता पर कोई आंच आई तो सैदपुर क्षेत्र के जांबाजों ने अपनी जान की आहुति देकर उसकी रक्षा की।
जनपद के सैदपुर गांव को सैनिकों का गांव ऐसे ही नहीं कहा जाता, यहां के हर परिवार ने देश की सीमाओं की रक्षा के लिए जाबांज दिए हैं। सैदपुर और इसके पड़ोसी खैरपुर गांव ने कारगिल युद्ध में भी अपने एक एक सपूत की शहादत दी है। सैदपुर निवासी सुरेन्द्र ¨सह ने जहां द्रास सेक्टर स्थित तोलो¨लग पहाड़ी पर फतह के दौरान कई दुश्मन सैनिकों को मारकर 13 जून 1999 को वीरगति प्राप्त की, वहीं खैरपुर के लाल ओम प्रकाश रघुवंशी ने यही कारनामा टाइगर हिल की नवलहील पहाड़ी पर दुश्मनों से दो दो हाथ करते हुए 29 जून 1999 को अपनी जान की आहुति देकर इतिहास के स्वर्ण पन्नों में दर्ज हो गए। कारगिल युद्ध की शहादत से पूर्व भी सैदपुर के 171 वीर विभिन्न मोर्चो पर अपने प्राण न्यौछावर कर जनपद व गांव का नाम रोशन कर चुके हैं। जिसमें प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी विजय के दौरान गांव के 155 सैनिकों में से 29 की शहादत उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त 1962 के भारत चीन युद्ध हो या 1965 व 71 के पाकिस्तान युद्ध में सैदपुर के जांबाजों ने अपने जौहर दिखलाते हुए शहादत दी है। यहां तक कि नब्बे के दशक में श्रीलंका गई भारतीय शांति सेना में भी सैदपुर के लाल राजकुमार ने अपनी कुर्बानी देकर सैदपुर के गौरवपूर्ण इतिहास को आगे बढ़ाया था। सैदपुर के वीरों की कुर्बानी ने सैदपुर ही नहीं अपितु क्षेत्र का भी मान बढ़ाया है। 1965 के युद्ध के बाद तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने जब पहली बार गांव में आकर सैदपुर की धरती को नमन किया तो अपने वीर पुत्रों की शहादत का गम भूलकर राष्ट्रभक्ति का जो ज्वार उठा उसे देख पूरा क्षेत्र गौरवान्वित हो उठा था।