आखिरी सांस तक निकलती रहेगी आह..
बुलंदशहर : कैसा मनहूस दिन था। खेत में खड़ी फसल के बीच से ट्रैक्टर ले जाने पर एतराज क्या किया, पूरे वं
बुलंदशहर : कैसा मनहूस दिन था। खेत में खड़ी फसल के बीच से ट्रैक्टर ले जाने पर एतराज क्या किया, पूरे वंश का ही नाश हो गया। हत्यारे नरेश को फांसी के फंदे पर लटकाने पर ही दिल को सुकून मिलेगा।
घटना करीब तीन साल पहले खानपुर थाना क्षेत्र के माजरा की मढ़ैया गांव में हुई। यहां रहने वाली साठ साल की वीरवती का भरा-पूरा परिवार था। घर में पति और तीन होनहार बेटे थे। लेकिन एक मामूली से विवाद ने सब कुछ छीन लिया। वीरवती फफक पड़ती हैं और कहती हैं कि अगर वह मरती हैं तो परिवार का कोई व्यक्ति कांधा देने वाला नहीं रहा। घर में कोई कोई भी तो नहीं बचा। आज से करीब तीन साल पहले हुई हृदय विदारक घटना को याद कर वह फफक पड़ती हैं। 12 मई 2013 के उस काले दिन को याद करते हुए वीरवती कहती हैं कि परिवार में हंसी-खुशी का माहौल था। सुबह-सुबह पति और दोनों बड़े बेटे खेत में काम करने गए थे जबकि उसका छोटा बेटा घर पर ही था। वह अपने बेटों और पति के लिए नाश्ता तैयार कर रही थी, तभी किसी बात को लेकर खेत में विवाद होने की सूचना मिली। खड़ी फसल में से देवर के ट्रैक्टर ले जाने पर उपजे विवाद को मामूली सी घटना मानकर उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सोचा परिवार के बीच की ही तो बात है। थोड़ी देर में सब कुछ सामान्य हो जाएगा। लेकिन अगले चंद क्षणों में क्या से क्या हो गया। उसे बयान करने का जैसे उसके अंदर साहस ही नहीं बचा हो। बहुत कुछ बोलने की कोशिश करने के बाद भी वह कुछ नहीं बोल पाई। बस रोये जा रही थी।ं रोये भी क्यों न। तीन के तीन बेटों और पति को गवां दिया। पूरे वंश का ही नाश हो गया। मरने के बाद कांधा देने वाला भी अपना कोई नहीं बचा। सरकारी वकील प्रशांत चौधरी बताते हैं कि यह घटना मानवता को तार-तार कर देने वाली थी। उन्होंने बताया कि खेत में काम कर रहे पति और दोनों बेटों को गोलियों से भूनने के बाद पूरे वंश का नामो निशान मिटा देने की नीयत से नरेश ने घर में खेल रहे सबसे छोटे बेटे बॉबी को भी मौत की नींद सुला दिया। इतने से भी उसका मन नहीं भरा तो बीचबचाव को पहुंची पड़ोस की एक महिला को भी मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद यहां-वहां उसने वीरवती की तलाश शुरू की। लेकिन देवर नरेश के सिर पर मौत सवार होने की मंशा भांपकर वह भूसे के घर में घुस गई। इस तरह उसकी जान तो बच गई लेकिन सबको खोने के बाद उसके पास जीने के लिए बचा ही क्या है। थोड़ी देर बाद अपने आपको संभालते हुए वीरवती कहती हैं कि हत्यारे को फांसी की सजा मिलने से उसके मन को कुछ हद तक संतुष्टि तो जरूर हुई है लेकिन उसे जो दर्द मिला है, उसे जीते जी वह नहीं भूल पाएगी।
अपराध जघन्य है इसलिए
फांसी की सजा: वकील
वरिष्ठ वकील प्रशांत चौधरी कहते हैं कि यह नरसंहार की विरलतम घटनाओं में से एक है। इस तरह की घटना में कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। दोषी को फांसी की सजा देकर समाज को संदेश दिया है कि कोई इस तरह की घटना को अंजाम देने की हिम्मत नहीं जुटा सके।
जनपद में पहले भी हो चुकी
हैं इस तरह की वारदातें
कुछ साल पहले नरौरा क्षेत्र के पिलखना गांव में भट्ठे के बंटवारे को लेकर अपने ही परिवार के सात लोगों की धारदार हथियार से हत्या कर दी थी। कुछ माह पूर्व अदालत ने इस मामले में चार हत्यारों को फांसी की सजा सुनाई थी। इसी तरह मामूली सी बात पर सन 2008 में अगौता थाना क्षेत्र के बरारी गांव में एक ही परिवार के सात लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी। इसमें भी पूरे वंश का ही नाश हो गया था।