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सुखी जीवन में प्रेम और विश्वास की जरूरत : संतोष आनंद

By Edited By: Published: Wed, 17 Sep 2014 02:52 AM (IST)Updated: Wed, 17 Sep 2014 02:52 AM (IST)

सहारनपुर : संतोष आनंद ने जिस किस्म के गीत लिखे उनमें तत्कालीन सिनेमा और समाज की एक खास समझ दिखाई देती है। लगभग 75 साल की उम्र में भी उनका जोश देखते ही बनता है। इन्होंने अपने गीतों में मध्यम वर्गीय परिवारों को केंद्रित किया है। इनका मानना है कि सुखी जीवन में प्रेम और विश्वास की होती जरूरत है।

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ऐतिहासिक मेला गुघाल के सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में रविवार की रात अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में आए गीतकार संतोष आनंद ने जागरण से बातचीत की। उनका कहना है कि गीत को गरीबी, लाचारी, तकलीफ, मनमुटाव और जीवन परीक्षा से लड़कर सहयोग, रचनात्मकता, निर्माण, आशा के साथ विजयी होने के लिए सुनना चाहिए।

उन्होंने हमेशा अपने गीतों को मध्यम वर्गीय आकांक्षाओं को ध्यान में रखकर लिखा है। जीवन को खुशी-खुशी जीने के लिए 'सुविधाओं' की नहीं अपितु प्रेम और विश्वास की जरूरत होती है। जीवन की हर परीक्षा को उत्साह, सहयोग एवं मनोबल की सहायता से पास किया जा सकता है। 'अंधेरों से भी मिल रही रोशनी' का जज्बा लेकर हम हर बाधा को 'मील का पत्थर' बना सकते हैं। इस तरह से बाधाओं को भी 'सकारात्मक' मानने सेभविष्य की राहें सरल हो जाती हैं। गीतकार संतोष आनंद ने अपना फिल्मी सफर अभिनेता मनोज कुमार की सन 1970 मे रिलीज हुई हिट फिल्म 'पूरब और पश्चिम 'से शुरु किया। इनका कहना है कि इस फि़ल्म मे कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में उन्हें एक अच्छा मंच मिला। इससे उन्हें और भी जाने-माने संगीतकारों के साथ सुर-ताल मिलाने का अवसर मिला। इस कड़ी में सन 1974 मे रिलीज और लक्ष्मीकात -प्यारेलाल के संगीत से सुसज्जित 'रोटी कपड़ा और मकान' के गीत संतोष आनंद ने लिखे। पूरब और पश्चिम के बाद मनोज कुमार ने एक बार फिर संतोष आनंद पर भरोसा किया और 'रोटी कपड़ा और मकान' के लिए गीत लिखकर संतोष 'फिल्म फेयर' पुरस्कार की स्वर्णिम परम्परा

एवं परिवार का हिस्सा बने। संतोष आनंद ने बताया कि फिल्म के गीत 'मैं ना भूलूंगा, मैं ना भूलूंगी' के लिए उन्हें 1974 का बेस्ट गीतकार का पुरस्कार मिला। इसके बाद मनोज कुमार ने उनसे अपने प्रोडक्शन की दूसरी फिल्मों जैसे क्रांति, शोर और प्यासा सावन आदि के लिए गीत लिखवाए। इनका कहना है कि वर्ष 1981 में आई क्रांति फिल्म के गीतों के बाद राज कपूर की फिल्म 'प्रेम रोग' निर्मित हो रही थी। शैलेन्द्र को गुजरे हुए वर्षो हो गए थे, ऐसे में राज जी को एक ऐसे गीतकार की जरूरत पड़ी जो उनके लिए गीत लिखे। राज कपूर उनके गीतों से इतने प्रभावित हुए कि एक बार फिर लक्ष्मीकात-प्यारेलाल के साथ उनके कलम का जादू चला। 'मुहब्बत है क्या चीज, हम को बताओ' के लिए 1982 में उन्हें फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।

सांझ से हो गई सवेर, आवाज लगी बस एक और

सहारनपुर :

ऐतिहासिक मेला गुघाल में दैनिक जागरण एवं नगर निगम द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में रचनाकारों ने श्रोताओं को सांझ से सवेरे तक सुरों की गंगा में बांधे रखा। वीररस की कविताओं ने जहां श्रोताओं को झकझोर दिया वही श्रृंगार रस भी मेघा की तरह जमकर बरसा। तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सभागार गूंज उठा। सोमवार रात जनमंच सभागार में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का शुभारंभ कमिश्नर तनवीर जफर अली, डीएम डा.इन्द्रवीर सिंह यादव, नगर आयुक्त डा.नीरज शुक्ला, दैनिक जागरण मेरठ के महाप्रबंधक विकास चुग, संपादकीय प्रभारी मनोज झा, वरिष्ठ प्रबंधक ब्रांड अरुण तिवारी, सीओ द्वितीय चरण सिंह यादव ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया। कवि सम्मेलन का संचालन चुलबुले कवि सर्वेश अस्थाना ने किया। फिल्म क्रांति के गीतकार संतोष आनंद, विष्णु सक्सेना, अशोक साहिल, मुमताज नसीम, नेमपाल प्रजापति, बनज कुमार बनज विनीत चौहान, राजेन्द्र राजन आदि ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को झकझोरा और गुदगुदाया।


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