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प्राकृतिक जलस्त्रोत के रक्षक पंडित ब्रजभूषण

राजपाल ¨सह, गंज दारानगर (बिजनौर): प्राचीन काल में पेयजल का एक अदद स्त्रोत कुएं भले ही आज इतिहास बन ग

By Edited By: Published: Tue, 24 May 2016 10:08 PM (IST)Updated: Tue, 24 May 2016 10:08 PM (IST)

राजपाल ¨सह, गंज दारानगर (बिजनौर): प्राचीन काल में पेयजल का एक अदद स्त्रोत कुएं भले ही आज इतिहास बन गए हों, लेकिन गंज दारानगर निवासी पंडित ब्रजभूषण शास्त्री के लिए कुएं की महत्ता आज भी कम नहीं हुई। उन्होंने अपने घर में कभी हैंडपंप नहीं लगवाया। घर के आंगन में 67 साल पुराने कुंए से पानी पर ही वह निर्भर हैं। पीने के अलावा स्नान करने, खाना बनाने तथा पूजा-पाठ जैसे सभी कार्यों में इसी कुएं का पानी प्रयोग कर रहे हैं।

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गंगा किनारे स्थित गंज दारानगर निवासी पंडित ब्रजभूषण शास्त्री बताते हैं कि 67 साल पहले उनके पिता पंडित वैद्य वासुदेव शास्त्री ने बिजनौर से राजमिस्त्री बुलवाकर इस कुएं को खुदवाया था। वे आयुर्वेदिक दवाइयों आसव आदि बनाने में कुएं के शुद्ध पानी का प्रयोग करते थे। कर्मकांडी ब्राह्मण होने के कारण हैंडपंप के चलन में आने के बाद भी उसमें चमड़े के वाल्ब का प्रयोग होने के कारण उसे अशुद्ध मानते हुए हैंडपंप नहीं लगवाया। पंडित ब्रजभूषण शास्त्री के परिवार में पुत्र शशिभूषण शास्त्री, पुत्रवधू व एक पौत्र हैं। दो पुत्रियों की शादी हो चुकी है। शशिभूषण एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक हैं। उन्होंने पिता की स्थापित धरोहर को जिंदा रखने के लिए घर में हैंडपंप नहीं लगवाया। गांव में ओवरहैड टैंक स्थापित होने के बावजूद टंकी का कनेक्शन नहीं लिया। ब्रजभूषण शास्त्री विदुर कुटी गुरु गृह इंटर कालेज में संस्कृत के अध्यापक रहे हैं। ये भी वैद्य कर्म करते हैं और दवाइयों में इसी कुएं का पानी प्रयोग करते हैं। वह बताते हैं कि कई रिश्तेदारों ने घर में खुदे कुएं को बंद कराने का दबाव डाला, लेकिन हम इस कुएं को अपनी धरोहर और प्राकृतिक जलस्त्रोत के प्राचीन साधन को शुद्ध मानते हैं। उनका कहना है कि 23 मई को मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पानी को परमात्मा का प्रसाद बताया है और एक बूंद पानी को भी बर्बाद नहीं करने की सलाह दी है। प्रदेश सरकार ने भी ग्रामीण पेयजल योजना के लिए बड़ी धनराशि आवंटित की है।

कुएं के पानी का इस्तेमाल होने से न तो जल की बर्बादी होती है और न ही भूजल का अत्याधिक दोहन होता है। कुएं से उतना ही पानी खींचा जाता है, जितने की जरूरत होती है। साथ ही बारिश का पानी एकत्रित होने से भूजल का संरक्षण भी होता है।


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