बहती गंगा से मुसीबतों की मझधार में हजारों किसान
योगेश कुमार राज, बिजनौर : राजा भगीरथ के पुरखों को तारने वाली गंगा की कहानी पर मोहम्मदपुर देवमल वि
योगेश कुमार राज, बिजनौर :
राजा भगीरथ के पुरखों को तारने वाली गंगा की कहानी पर मोहम्मदपुर देवमल विकासखंड क्षेत्र के लोग अब विश्वास करने को तैयार नहीं। वे तो मोक्षदायिनी की लिखी बर्बादी की इबारत के साक्षी हैं। करीब एक दर्जन गांवों के अस्तित्व को गंगा निगल चुकी है। अब यहां के बाशिंदों की खुशियां और उम्मीदें गंगा के पानी में बह गई लगती हैं। हाल यह है कि करीब दो हजार परिवारों की सैकड़ों बीघा जमीन गंगा के कटाव की भेंट चढ़ चुकी है। कई बड़े खेतिहर किसानों के परिवार मजदूरी को विवश हैं।
मोहम्मदपुर देवमल ब्लाक में मंडावर से बालावाली के बीच गंगा किनारे आबाद एक दर्जन गांवों के बाशिंदों के लिए गंगा जीवनदायिनी नहीं, बल्कि उनको बर्बादी के भंवर में डुबोने वाली है। पिछले एक दशक से बरसात के दिनों में गंगा हर बार अपनी धार बदल रही है। इसका रुख मुजफ्फरनगर से बिजनौर की ओर होता जा रहा है। 2010 में आई बाढ़ के कारण खानपुर और हृदयरामपुर गांव का अस्तित्व ही खत्म हो गया। इसके बाद शीमला कलां, शीमला खुर्द शीमली, मीरापुर, कोहरपुर और सुखवाबाद को गंगा ने अपनी चपेट में लिया। इन गांवों की खेती की जमीन गंगा में समा गई। ये सभी गांव पूरी तरह उजड़ गए और इन लोगों ने दयालवाला तथा आसपास के गांवों में अपना ठिकाना बना लिया। स्थानीय लोगों और प्रशासन की वजह से इन गांवों में रहने वाले करीब दो हजार से ज्यादा परिवारों के लोगों की जान तो बच गई, लेकिन ये लोग बर्बादी के ऐसे भंवर में फंसे हैं, जहां से वे जितना निकलने की कोशिश करते हैं, बेबसी की दलदल में उतना ही धंस जाते हैं। बीस से पचास बीघे जमीन के मालिक अब मजदूरी करने को मजबूर हैं। घर, जमीन गंगा में विलीन हो गई और बच्चों के हाथों में किताबें नहीं, मजदूरी करने की मजबूरी है। राजारामपुर, डैबलगढ, रघुनाथपुर, नई बस्ती, कुंदनपुर, मानवाला और शेखपुर खिरनी गांव का भी यही हाल है।
बर्बादी की कहानी रघुवीर की जुबानी
2010 में आई बाढ़ में अपना घर और जमीन खोने वाले शीमला कलां निवासी 65 वर्षीय रघुबीर ¨सह का कहना है कि उनके गांव में करीब 200 परिवार थे। 1800 मतदाता थे। बाढ़ आई तो तीन दिन में सब कुछ बदल गया। पूरी जमीन, संपत्ति और घर गंगा में डूब चुका था। घर में रखा सामान बचाने का भी मौका नहीं मिला। काफी मशक्कत के बाद दयालवाला में रहने को जगह मिली। प्रशासन की तरफ से 35000 रुपये प्रति परिवार के लिए आवंटित किए गए, लेकिन मुश्किल से ही दो-तीन दर्जन परिवारों को मुआवजा मिला। अब हर साल गंगा का पानी उतरने पर कड़ी मशक्कत के बाद जमीन को तलाश करके फसल बोते हैं, लेकिन बरसात आते ही गंगा में उफान आता है और फिर सबकुछ खत्म हो जाता है।
गंगा में समा जाती है ¨जदगी
बरसात के दिनों में यहां के स्थानीय बा¨शदों की हर साल गंगा परीक्षा लेती है। बरसात में गंगा का जल स्तर बढ़ते इन गावों के मचर्े और बच्चों की दिनचर्या नाव पर निर्भर होती है। करीब-करीब हर साल कोई न कोई नाव नदी में डूब जाती है और ¨जदगी लौटकर नहीं आती। नाव डूबने से अब तक एक दर्जन लोग जान से हाथ धो चुके हैं।
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चित्र परिचय :
1 गंगा के आगोश में यहीं पर बसे थे शीमला कलां, खुली खानपुर और ह्रदयरामपुर गांव
2. आपबीती बताता शीमला कलां निवासी रघुवीर ¨सह