'मनुष्य है धरती का सबसे संवेदनशील प्राणी'
धामपुर (बिजनौर): मानव को परम पिता परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति कहा जाता है। मानव के भीतर प्रेम, दया,
धामपुर (बिजनौर): मानव को परम पिता परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति कहा जाता है। मानव के भीतर प्रेम, दया, करूणा, शोक, सहानुभूति आदि संवेगों का अथाह सागर है। मनुष्य एक संवेदनशील प्राणी माना जाता है। वह दूसरों के सुख-दुख में सहायता करता है।
संवेदनशीलता से तात्पर्य मानव का किसी वस्तु, घटना अथवा व्यक्ति के प्रति शारीरिक तथा भावनात्मक अभव्यक्ति व प्रतिक्रिया देना है। प्रत्येक मानव अपनी संवेदनाओं को अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त करता है। प्राचीन काल में हम अपने सगे-संबंधियों की सूचना हाल-चाल पत्रों द्वारा पूछते थे। पत्र में हमारी भावनाएं व संवेदनाओं को प्रकट किया जाता था। ¨कतु तकनीकी विकास के कारण बस एक क्लिक करते ही सारी जानकारी हमारी आंखों के सामने होती है। साइबर के बढ़ते प्रभाव ने हमारी युवा पीढ़ी को बुरी तरह प्रभावित किया है। इंटरनेट, फेसबुक, वाट्स-एप, ट्विटर, समेत अनेक संसाधन युवाओं तथा बच्चों पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों तक साइकबर के माध्यम से हर प्रकार का ज्ञान पहुंच रहा है। जो उनके लिए चाहे आवश्यक हो या नहीं। बह बच्चे उम्र से पहले ही बड़े हो रहे हैं। उनका बचपन छिन रहा है। बच्चों की कल्पनाशीलता प्रभावित हो रही है। संवेदनाओं के हस के कारण अपराधों में निरंतर वृद्धि हो रही है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हमें तकनीकी विकास के साथ-साथ अपनी मानवीय संवेदनाओं को जागृत करना होगा। तभी तो कहा गया है, संवेदनाएं सब मृत हो चुकी, मृत हो गए हमारे प्राण, जब होंगी संवेदनाएं जागृत तभी होगा देश का कल्याण।
घटा दीक्षित, प्रधानाचार्या एमकेडी सीनियर सेकेंड्री स्कूल धामपुर
इंसेट-
-सूचना क्रांति के युग में संचार संसाधनों का बेहतर ढंग से उपयोग करना भी बड़ी चुनौती है। संचार संसाधनों के जरूरी प्रयोग के बल पर ही इनकी उत्पत्ति की सार्थकता को सिद्ध किया जा सकता है। इंटरनेट, फेसबुक जैसी नवीनीकृत खोज हमें एक-दूसरे के साथ जोड़ने व ज्ञानवर्धन करने में बेहद उपयोगी हैं। लेकिन इन्हीं संसाधनों का दुरुपयोग समाज में नई कुरीतियों को जन्म देने के साथ ही हमारे सामाजिक ताने-बाने को भी तोड़ सकता है।
शिवांगी विश्नोई, एमकेडी सीनियर सेकेंड्री स्कूल
-आधुनिक संचार संसाधनों ने हमारे जीवन को बेहद सरल बनाने का काम किया है। एक-दूसरे के साथ लगातार सीधा जुड़ाव बनाए रखने में इन संसाधनों की अहम भूमिका है। देश-दुनियां की पल-पल की गतिविधियों से रूबरू होने में भी ये संसाधन हमारी मदद करते हैं। कोशिश इन संसाधनों के इसी प्रकार कुशल प्रयोग की रहनी चाहिए। ऐसे संसाधनों के बेहतर प्रयोग के बल पर ही हम इसकी मूल भावना को सफल सिद्ध कर सकते हैं।
प्रज्ञा चौहान, एमकेडी सीनियर सेकेंड्री स्कूल ।