फिर कब गुलजार होगा बंद डाइंग प्लांट
ज्ञानपुर (भदोही) : सदन में पहुंचने की तैयारी करने वाले भावी सांसद जी। ज्ञानपुर से गोपीगंज की ओर जब यात्रा करना तो नहर की पुलिया पर खड़ा होकर पूर्व की दिशा में जरूर एक नजर डालना। ठीक नहर किनारे बदहाल, जर्जर अवस्था की स्थिति में मैं खड़ा मिलूंगा। कुछ यूं अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा डाइंग प्लांट भावी माननीयों से गुहार लगा रहा है। बीस वर्ष बीत गए लेकिन किसी प्रतिनिधि की नजर इस भवन पर नहीं पड़ी। गुम हो रहा उद्योग प्रत्याशियों के लिए चुनौती बन चुका है।
इतिहास के पन्नों में देखा जाए तो भदोही के तमाम ऐसे रत्न छिपे मिलेंगे जिसे कम ही लोग जानते हैं और न सुने हैं। कुछ ऐसा ही है ज्ञानपुर पंप कैनाल के समीप बड़वापुर गांव में स्थापित डाइंग प्लांट। इसको देख लोग उलझ जाते हैं। आखिर यहां पर क्या होता था। इसे किसने बनाया था और क्यों। आस-पास कोई बुजुर्ग मिल गए तो जवाब मिला नहीं तो जवाब लेना ही भूल गए। इतिहास के पन्नों के खंगलाने पर पता चला कि 70 के दशक में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर यहां पर सरकारी डाइंग प्लांट स्थापित किया गया था। यहां पर काती पकाने का काम किया जाता था। 80 के दशक में इस डाइंग प्लांट में हजारों मजदूरों को रोजगार मिलता था। वर्ष 1985 के बाद से यह प्लांट सदा के लिए बंद हो गया। हर समय गुलजार रहने वाला प्लांट सदा के लिए खामोश हो गया। कई प्रतिनिधि चुनावी किला फतह कर सदन में पहुंच गए लेकिन किसी ने भी सदन में इसकी आवाज नहीं उठाई। हकीकत तो यह है कि डाइंग प्लांट की ओर किसी ने नजर डालना भी मुनासिब नहीं समझा।
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डाइंग प्लांट में काम करने के लिए गांव से दर्जनों मजदूर जाते थे। इसी से उनके परिवार का भरण-पोषण चल रहा था। उसके बंद होने के बाद मजदूर दूसरे कार्यो में जुट गए। इसे चलाने का किसी ने भी प्रयास नहीं किया।
चित्र.15. रिंकू सिंह
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डाइंग प्लांट को फिर से चलाने के लिए किसी भी प्रतिनिधि ने प्रयास नहीं किया। यदि प्लांट चल गया होता तो रोजगार सृजन के साथ-साथ विकास को भी गति मिलता।
चित्र.16. शिवशंकर शर्मा
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प्लांट बंद होने से कालीन उद्योग को बहुत बड़ा झटका लगा है। इसे चलाने के लिए सदन तक आवाज बुलंद करनी चाहिए थी लेकिन ऐसा किसी ने नहीं किया।
चित्र.17. लालजी बिंद।
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जिले की विकास की कड़ी में शामिल डाइंग प्लांट बंद होने से कालीन उद्योग को करारा झटका लगा। कई प्रत्याशी सदन में चुनकर गए लेकिन किसी ने आवाज नहीं उठाई।
चित्र.18. विकास नारायण सिंह
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दशकों पूर्व हर समय गुलजार रहने वाला प्लांट खामोस हो जाने से कालीन उद्यमी प्राइवेट प्लांट में काती पकवाते हैं। इसके लिए अतिरिक्त भुगतान करना पड़ता है। सरकारी प्लांट न होने से उन्हें दिक्कत उठानी पड़ रही है।
चित्र.19. ताराचंद
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प्लांट को बंद हो जाने से मजदूरों की रोजी रोटी पर संकट छा गया। इसे चलाने के लिए प्रतिनिधियों को आगे आना होगा।
चित्र.20. कुर्बानअली