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बस्ती के इस बच्चे के साथ हमसाए की तरह रहते हैं जहरीले सांप

उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक बच्चा ऐसा भी है, जो जहरीले सांपों के साथ खेलता है जब वह पढ़ता है और कहीं जाता है तो यह जहरीले सांप उसका हम साया बने रहते हैं

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 27 Sep 2016 01:57 PM (IST)Updated: Wed, 28 Sep 2016 12:39 PM (IST)
बस्ती के इस बच्चे के साथ हमसाए की तरह रहते हैं जहरीले सांप

लखनऊ (वेब डेस्क)। सांप का नाम जेहन में आते ही लोग घबरा जाते हैं। अगर बात जहरीले कोबरा की हो तो किसी की भी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाए, लेकिन उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में एक बच्चा ऐसा भी है, जो जहरीले सांपों के साथ खेलता है जब वह पढ़ता है और कहीं जाता है तो यह जहरीले सांप उसका हम साया बने रहते हैं मजाल है कि कोई उस बच्चे के पास फटक भी जाये। दरअसल बस्ती जिले के दुबौलिया थाना क्षेत्र के पिपरौली गांव निवासी हक्कुल को बचपन से ही सांपों के बीच में रहना पसंद हैं। अब उनका बच्चे भी सांपों को अपना दोस्त समझते हैं और सांप भी बच्चों के साथ हमसाया बनकर रहते हैं।

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हक्कुल का कहना है कि बचपन से ही वे इन सांपों के साथ खेलते-खेलते बड़े हुए हैं। जिसके बाद धीरे-धीरे उन्हें लोगों ने सांप पकडऩे के लिए बुलाना शुरू किया। हक्कुल का कहना है कि पहले कच्चे मकान में ये सांप सुरक्षित रहते थे, लेकिन अब इनके रहने की कोई जगह नहीं बची है। इस वजह से ये अब ज्यादा लोगों को काटते हैं । हक्कुल का पूरा घर इन सांपों के साथ एक परिवार की तरह रहते हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी इन सांपों के साथ खेलते हैं। जब ये बच्चे पढ़ाई लिखाई करते हैं तो भी सांप इनकी चारपाई पर सुरक्षा के लिए मुस्तैद रहते हैं। इन छोटे-छोटे बच्चों को सांपों से डर नहीं लगता, ये बिना डरे इन के साथ खेलते रहते हैं।

हक्कुल का कहना है कि इनका रहना जरूरी है क्योंकि सांप इंसान का आधा जीवन है। सांपों के संरक्षण के लिए हक्कुल 2009 से लड़ाई लड़ रहे हैं। वह कहते हैं कि वह राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री के यहां से जनसूचना मांगी गई लेकिन आज तक कोई सूचना नहीं दी गई है।हक्कुल ने सरकार से इन सांपो को पालने के लिए अनुमति मांगी थी, लेकिन राष्ट्रपती और प्रधानमंत्री के यहां से जवाब आया कि प्रतिदिन वन विभाग के कर्मचारी आकर सांपों को ले जाए. लेकिन वन विभाग इन सांपों को नहीं ले जाता। कहने के बाद भी कोई वन विभाग का कर्मचारी नहीं आता। अब हक्कुल का कहना है कि इसके रजिस्ट्रेशन और एनजीओ के लिए लखनऊ वन विभाग के विशेषज्ञ वासिफ जमशेद 21 हजार रूपए ले गए थे, लेकिन आज तक कुछ हुआ नहीं।


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