स्पर बने बीत गए वर्षों, नहीं मिला मुआवजा
बस्ती: दुबौलिया विकास खंड के गौरा व तिवारीपुर गांव के निकट वर्षो पूर्व बांध को सुरक्षित रखने के लिए
बस्ती: दुबौलिया विकास खंड के गौरा व तिवारीपुर गांव के निकट वर्षो पूर्व बांध को सुरक्षित रखने के लिए किसानों की जमीन बाढ़ खंड द्वारा अधिगृहीत तो की गई, लेकिन आज तक इन किसानों को एक भी पैसा मुआवजा नहीं मिल सका है। अब हाल यह है कि नदी के बाद बची-खुची जमीन स्पर निर्माण में चले जाने से इनके आगे दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
बता दें कि बीडी तटबंध निर्माण के दशकों तक जब इसकी मरम्मत के नाम पर सिर्फ कागजों में काम दिखाया गया तो यह दिन-ब-दिन जर्जर होता चला गया। वर्षो पूर्व जब बाढ़ खंड को लगा कि अब बांध को बचा पाना मुश्किल होगा तो विभाग ने बांध के उस पार स्थित किसानों की जमीनों को अधिगृहीत कर स्पर निर्माण का काम शुरू कर दिया। किसानों को आश्वस्त किया गया था कि जल्द ही सर्किल रेट तय कर उन्हें उचित मुआवजा दिलाया जाएगा, लेकिन स्पर निर्माण को वर्षो बीत गए किसी को भी एक पैसे मुआवजा नही मिल सका है। घाघरा की बाढ़ व कटान में सब कुछ गंवाने वाले इन किसानों के पास सिर्फ थोड़ी जमीन बची थी वह भी चली गई। साथ ही जमीन का मुआवजा न मिलने की वजह से अब सैकड़ों किसान परिवारों के आगे दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरी करने के शिवा कोई दूसरा चारा नहीं है।
सिर्फ मिलता है आश्वासन
दुबौलिया: हर साल जब घाघरा अपने रौद्र रूप में होती है और सैकड़ों गांवों के अस्तित्व पर खतरा मड़रा रहा होता है तो तमाम आला अधिकारी व जन प्रतिनिधि यहां का दौरा करते हैं। दौरे के समय इन किसानों की बदहाली दूर करने व मुआवजा दिलाने के लिए आश्वासन बांट दिए जाते हैं। अब इन किसान परिवारों ने भी मुआवजा मिलने की उम्मीद छोड़ ही दी है।
सताने लगा बाढ़ का भय
दुबौलिया: स्पर निर्माण के बाद भले ही बाढ़ खंड बांध को पूरी तरह सुरक्षित मान रहा है लेकिन ग्रामीणों के माथे पर अभी से ¨चता की लकीरें दिखाई देने लगी है। वजह कि बनाए गए स्पर जहां जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं वहीं बांध को भी मरम्मत की दरकार है। अब जबकि मानसून आने में चंद दिन शेष हैं तो ग्रामीण विभाग की उदासीनता को लेकर काफी परेशान हैं।
बोले ग्रामीण
ग्रामीण परागदत्त ¨सह, केशरी ¨सह, अशोक कुमार, शिवकुमार, केशू, चन्द्रभान, जयप्रकाश कहते हैं कि अभी तक मुआवजा न मिलने की वजह से हम लोगों को काफी समस्या झेलनी पड़ रही है। कहते हैं कि हर साल अधिकारियों द्वारा आश्वासन तो मिलता है लेकिन मुआवजा नहीं मिला।