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आस्था और विश्वास के छठ महापर्व को शत-शत नमन

बस्ती : आस्था और विश्वास के महापर्व छठ का गुरुवार को उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ ही समापन हो

By Edited By: Published: Fri, 31 Oct 2014 12:07 AM (IST)Updated: Fri, 31 Oct 2014 12:07 AM (IST)
आस्था और विश्वास के छठ महापर्व को शत-शत नमन

बस्ती : आस्था और विश्वास के महापर्व छठ का गुरुवार को उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ ही समापन हो गया। व्रतियों ने 36 घंटे की कड़ी तपस्या के बाद पूरे कुनबे के साथ सुख-समृद्धि, धन-ऐश्वर्य, संतान और अपने सुहाग को चिरंजीव रखने के लिए मिन्नतें की। इस दौरान नदियों, जलाशयों और कृत्रिम रूप से बनाए गए पोखरों के किनारे श्रद्धा का सैलाब हिलोरे लेता रहा।

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शहर से सटे कुआनों के अमहट तट का नजारा यह रहा कि बुधवार की आधी रात बाद से ही व्रतियों और उनके परिजनों का जमावड़ा शुरु हो गया। पैदल, दो पहिया, और चार पहिया वाहनों से उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए श्रद्धालु पहुंचने लगे। पौ फटने से पहले ही समूचा घाट खचा-खच भीड़ से भर गया। घाट को जोड़ने वाले सभी मार्गो पर जमा की स्थिति पैदा हो गई। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस महकमे को काफी मशक्कत उठानी पड़ी। घाट के आसपास छठ मइया के सम्मान में गीत गूंजती रही। व्रती, उनके परिजन और दर्शक थिरकते रहे। परिजनों के साथ पहुंचे युवकों ने सूर्योदय से पूर्व आतिशबाजी कर उगते सूर्य की प्रतिक्षा में बेकरार रहे। कुछ उत्साही महिलाएं ढोलक की थाप पर थिरकते, भावविभोर होकर सूर्य की अगवानी करतीं दिखी। हालांकि नगर पालिका प्रशासन और बिजली विभाग ने रोशनी की कोई खास व्यवस्था नहीं की थी। इसके बावजूद नदी में दीपदान और अतिशबाजी की रोशनी से समूचा इलाका नहाता रहा। कमोवेश यही स्थिति पुरानी बस्ती स्थित निर्मलीकुंड, लालगंज के नौरहनीघाट सहित आमी और मनोरमा के किनारे घाटों पर दिखी।

जब निशा छटने लगी, और आसमान से सूर्य के निकले से पूर्व लालिमा फूटने लगी तो समूचा तट तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। एक दूसरे को पछाड़ कर सबसे पहले भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य देने के लिए व्रतियों में होड़ मच गई। किसी को यह चिंता नहीं रही कि यदि पैर फिसला तो उनकी जान खतरे में पड़ जाएगी। कारण यह कि उन्हें भरोसा रहा कि छठ मइया की कृपा से कुछ भी अनहोनी नहीं होने पाएगी। जब सूर्य का उदय होने लगा तो किसी को यह चिंता नहीं रही कि कुआनों का पानी जहरीला हो चुका है। इसमें ऐसे रसायनिक तत्व मिले हुए हैं, जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

जब व्रती महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में पूजा सामग्री लेकर तट से नदी में उतने लगीं, तो उनकी आस्था, श्रद्धा और मनोभाव देखकर लगा कि कुआनों व जलाशयों का जहरीला प्रदूषित पानी उनके विश्वास को कतई डिगा नहीं सकता।


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