अपनी तो जिंदगी कटती है फुटपाथ पर
जागरण संवाददाता,बस्ती: अपनी जिंदगी तो कटती है फुटपाथ पर, ऊंचे-ऊंचे महल अपने किस काम के। यह गीत के बोल नहीं बल्कि बांसफोड़ समूह के लोगों के जीवन की हकीकत है। गरमी से बचने के लिए आपने बड़े लोगों के दरवाजों पर एवं सरकारी कार्यालयों के दरवाजों पर पतले बांस का खूबसूरत परदा देखा ही होगा। अपने हुनर से दूसरों को राहत देने वाले ये लोग इस दोपहरी में तपने को मजबूर हैं।
कटेश्वर पार्क के मुख्य गेट पर आठ परिवारों का यह समूह इस गरमी में दो जून की रोटी के लिए हाड़ तोड़ परिश्रम करके मच्छरदानी का डंडा, बांस का चिक, डलिया, वैवाहिक समारोह के लिए डाल, झबिया, बांस की सीढ़ी आदि के निर्माण का कार्य करते हैं। इस समय इनका कारोबार काफी मंदा चल रहा है। कभी ग्राहक आ गए तो ठीक है नहीं तो बैठक कर प्रतीक्षा करना इनकी नियति है। इस कुनबे के एक सदस्य अर्जुन का कहना है कि बांस का संकट गहराता जा रहा है। अब आसानी से बांस नहीं मिल पाता। मिलता है तो सौ से एक सौ पचास रुपए प्रति बांस। वही बांस शहर में यदि ठेकेदार से लिया जाए तो और भी महंगा पड़ता है। वर्ष भर में अच्छे दिन लगन के ही होते हैं। मई मास में लगन की शुरुआत की प्रतीक्षा में मंगल कार्यो के लिए झबिया, डलिया, डाल आदि की तैयारी शुरू कर चुके कल्लू कहते हैं कि उन्हें लगन शुरू होने की बेसब्री से प्रतीक्षा है। इस बांसफोड़ परिवार का हर सदस्य हुनरमंद है। बच्चे हो या महिलाएं सभी कार्यो में हाथ बटाते हैं। संकट है तो बांस के आवक एवं सामानों के खपत की। पर जब यही काम है तो आराम कैसा। बांसफोड़ों का कहना है कि इस समय काम धीमी गति से चल रहा है। बांस भी बहुत खोजने से ही मिलता है और महंगा भी। गरमी तो बीत जाएगी पर बरसात के आगमन से ही डर लगता है। लगन शुरू होने के बाद आर्थिक रूप से मामला थोड़ा ठीक हो जाता है। चुनाव आया है,कुछ तो काम मिल ही जाएगा।