Move to Jagran APP

जिद के आगे जीत है..

बरेली: इंजीनियर। प्रशासक। कलाकार। यही परिचय है उनका। सरकारी योजनाओं के लिए कभी खुद साफ्टवेयर डेव

By Edited By: Published: Thu, 08 Oct 2015 01:39 AM (IST)Updated: Thu, 08 Oct 2015 01:39 AM (IST)
जिद के आगे जीत है..

बरेली: इंजीनियर। प्रशासक। कलाकार। यही परिचय है उनका। सरकारी योजनाओं के लिए कभी खुद साफ्टवेयर डेवलप करतीं हैं तो कभी बतौर डीएम ब्यूरोक्रेसी को कुछ लीक से हटकर काम करने का रास्ता दिखाती हैं। अपने खास नए आइडिया(इनोवेशन) से। इतना ही नहीं फुर्सत के समय में अंदर बैठा कलाकार मन जाग उठता है तो उठाती हैं तूलिका और कैनवास पर रंग भरना शुरू कर देती हैं। दो से चार घंटे के भीतर ही ऐसी पेंटिंग तैयार हो जाती है जो बरबस ही लोगों का मन मोह लेती है। हम बात कर रहे हैं बरेली की शुभ्रा सक्सेना की। सिविल सर्विसेज परीक्षा 2009 की आल इंडिया टॉपर शुभ्रा इस समय गृह जनपद के बगल के जिले में बतौर डीएम कुछ अलग कर रहीं है। जिसकी बदौलत सूबे की नौकरशाही में उनकी खास पहचान बनती जा रही। स्पेशल-26 में पढि़ए शुभ्रा सक्सेना की कहानी।

loksabha election banner

--------------

शादी-नौकरी के बाद वापसी आसान न थी

आइआईटी रुड़की से 2002 में बीटेक करने के बाद मोटे पैकेज पर आइटी प्रोफेशनल की नौकरी मिलना। इसके बाद शादी हो जाना। फिर अचानक मन में आना मुझे तो आइएएस बनना है। शादी के बाद फिर से पढ़ाई-लिखाई की दुनिया में वापसी करना कहां आसान होता है। मगर यह शुभ्रा सक्सेना की जिद ही रही कि वे चार साल से पढ़ाई से नाता टूटने के बाद सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की। पहले प्रयास में नहीं हुआ तो हार नहीं मानी। आखिरकार दूसरे प्रयास में पूरे देश के प्रतिभागियों को पीछे कर नंबर वन रैंक पर शुभ्रा ने अपना नाम दर्ज करा दिया।

------------------

पुराना शहर की हैं रहने वाली

कम लोगों को मालुम है कि शुभ्रा सक्सेना महानगर के पुराना शहर के मीरा की पैठ की रहने वालीं हैं। पिता अशोक चंद्र कोल इंडिया में सुप¨रटेंडेंट इंजीनियर रहे तो मां कामना चंद्रा गृहिणीं। अलीगढ़ निवासी शशांक गुप्ता से शादी के बाद एक दो साल की बेटी शायना हैं। खास बात है कि परिवार के तीनों सदस्यों का नाम श से शुरू होता है। शुभ्रा, शशांक और शायना।

--------------

झारखंड में बीते 14 साल

शुभ्रा का जन्म बरेली में हुआ इसके बाद चूंकि पिता झारखंड में नौकरी रहे तो पढ़ाई लिखाई वहीं पर हुई। शुभ्रा ने हाईस्कूल की शिक्षा झारखंड के डीएवी इंटर कालेज से पूरी की। इसके बाद मुरादाबाद ननिहाल में आ गईं। यहां के सीएम स्कूल से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की।

---------------

गांव और गरीबों के प्रति लगाव ने बना दिया आइएएस

मोटे पैकेज पर साफ्टवेयर इंजीनियर होने के चार साल बाद आइएएस बनने का ख्याल कैसे आया, दैनिक जागरण के इस सवाल पर शुभ्रा कहतीं हैं कि प्राइवेट सेक्टर में आप न तो गांवों के लिए कुछ कर सकते हैं न आम जन और गरीबों के लिए। मन में हमेशा यही टीस रही। जिससे इंजीनिय¨रग की नौकरी से ऊब गई। बस ठान लिया कि अब आइएएस बनकर ग्रामीण इलाकों के भले के लिए काम करना है।

--------------------

ढाई साल की तैयारी में मिल गई मंजिल

बतौर साफ्टवेयर इंजीनियर चार साल की नौकरी के बाद शुभ्रा ने वर्ष 2006 से सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की। एक साल की तैयारी के बाद नवंबर 2007 में परीक्षा में बैठीं। मगर पहले प्रयास में सफलता हासिल नहीं हुई। मगर शुभ्रा ने हार नहीं मानी और आखिरकार 2009 में दूसरे प्रयास में न केवल सफलता हासिल कीं बल्कि पूरे देश में टॉप कर प्रतिभागियों की रोल मॉडल बन गईं।

---------

उम्दा कलाकार की तरह बनाती हैं पेंटिंग

डीएम शुभ्रा सक्सेना उम्दा कलाकार की तरह पेंटिंग बनाती हैं। खास बात है कि इन्होंने पेंटिंग का हुनर तब सीखा जब आइएएस बन गईं। फैजाबाद में ट्रेनी आइएएस रहते हुए जब भी खाली समय मिलता पेंटिंग बनाने लगतीं। अब हुनर का आलम है कि दो से चार घंटे में उम्दा पेंटिंग तैयार कर लेती हैं।

-------------

योजनाओं का खुद साफ्टवेयर बनाती हैं डीएम शुभ्रा

डीएम शुभ्रा सक्सेना को जब भी योजनाओं में सुधार के लिए कुछ इनोवेशन(नवाचार) करना होता है तो वह अपने अंदर के इंजीनियर को जगा लेती हैं। इसके बाद साफ्टवेयर इंजीनिय¨रग की कला के जरिए खुद साफ्टवेयर बनातीं हैं। ताकि संबंधित योजना को ठीक से लागू किया जा सका। कुपोषण रोकने के लिए संव‌र्द्धन मुहिम हो या फिर श्रमिकों को योजनाओं का लाभ देने के लिए सहायता योजना। इसके साफ्टवेयर खुद शुभ्रा ने तैयार किए। श्रमिकों के पंजीकरण के लिए टोलफ्री नंबर की व्यवस्था की। इसके बाद सभी श्रमिकों की डिटेल साफ्टवेयर पर डालने के बाद उन्हें श्रम विभाग की सभी योजनाओं का लाभ दिलाया। ------------------

शुभ्रा के लीक से हटकर काम

1: कुपोषण रोकने के लिए संव‌र्द्धन स्कीम

डीएम शुभ्रा सक्सेना ने शाहजहांपुर में कुपोषण अभियान की सघन मानीट¨रग के लिए खुद एक विशेष साफ्टवेयर तैयार किया। नाम दिया संव‌र्द्धन। इसके तहत हर कुपोषित बच्चे डेटा जुटाकर अपलोड किया गया। कुपोषित बच्चों को क्या-क्या पोषक तत्व कब दिए गए सब चीजें अपलोड होतीं रहीं। बच्चों को दूध, केला, बिस्कुट, हारलेक्स आदि पोषक तत्व नियमित रूप से खिलाए गए। जिससे कुपोषण से निपटने में शाहजहांपुर सूबे के अग्रणी जिलों में शुमार हुआ।

2-बच्चों को ड्रेस ही नहीं स्वेटर और बैग भी मिला

शासन से बेसिक स्कूलों के बच्चों को दो सेट ड्रेस के लिए महज चार सौ रुपये ही मिलते हैं। मगर डीएम शाहजहांपुर शुभ्रा सक्सेना के दिमाग में आया कि पैंट-शर्ट हम दे रहे हैं मगर ठंड में स्वेटर नहीं रहेगा और बैग नहीं रहेगा तो बच्चे कैसे काम चलाएंगे। इस पर उन्होंने स्वयंसेवियों को एक मंच पर लाकर गरीब बच्चों की मदद की ठानी। बस फिर क्या था कि मदद की बौछार हो गई। नतीजा रहा कि पूरे सूबे में शाहजहांपुर एक ऐसा जिला रहा जहां बच्चों को ड्रेस के साथ स्वेटर भी मिला और स्कूली बैग भी। इस इनोवेशन से प्रभावित होकर कमिश्नर प्रमांशु कुमार मंडल के सभी जिलों में यह व्यवस्था लागू करने का निर्देश दिया है।

3-पांच लाख टारगेट, 12 लाख पौधे लगाए

शुभ्रा सक्सेना को पौधरोपण से खासा लगाव है। इस साल शाहजहांपुर जिले को शासन से पांच लाख पौधे लगाने का लक्ष्य मिला था। मगर डीएम के निर्देशन में सिर्फ 15 अगस्त को ही पांच लाख पौधे रोप दिए गए। बाकी पूरे सीजन में 12 लाख पौधे लगाने का रिकार्ड बना। पर्यावरण संरक्षण में यह प्रयास मील का पत्थर साबित हुआ।

----------------

शुभ्रा के सफल मंत्र

बकौल शुभ्रा सक्सेना ''देखिए हर किसी की मानसिक क्षमता बराबर होती है। सभी के पास 24 घंटे का समय, दो हाथ और दो पैर है। ऐसे में हम अपनी क्षमता का कितने बेहतर तरीके से इस्तेमाल करते हैं, इसी से हमारी काबिलियत का निर्धारण होता है। हर ंव्यक्ति विशेष होता है। अपने जिंदगी का लक्ष्य तय रखें। हमेशा सकारात्मक सोचें और आत्मविश्वास का स्तर ऊंचा रखें। देखिए, आप सफलता के पायदान पर जरूर चढ़ेंगे। सीखने की कोई उम्र नहीं होती। जिंदगी अनवरत सीखने का ही नाम है। मुझे पहले पेंटिंग नहीं बनाने आती थी। कालेज लाइफ में भी कभी प्रयास नहीं किया। जब आइएएस बनी तब जाकर पेंटिंग बनाना शुरू की। जिद के आगे जीत है।

श भ्रा से सिविल सविर्सेज परीक्षा का यूं हुआ इंटरव्यू-

सवाल:आपका क्या नाम है, अपने बारे में बताइए

जवाब-मेरा नाम शुभ्रा सक्सेना है..।

सवाल:क्या आप बच्चों के टीकाकरण शेड्यूल की जानकारी दे सकती हैं

जवाब: सर मैं शेड्यूल के बारे में तो पूरी तरह आश्वस्त नहीं हूं मगर बच्चों की कुछ वैक्सीन्स के बारे में जानकारी है। जैसे डीपीटी डिप्थीरिया, परटुसिस और टिटनेस में काम आता है। ओपीवी यानी ओरल पोलियो वैक्सीन भी होती है।

सवाल: क्या आप कुछ और टीके बता सकती हैं

जवाब: सॉरी सर, मुझे और याद नहीं है।

सवाल: क्या आप हेपेटाइटिस बी वैक्सीन नहीं जानती हैं

जवाब: सर जानती हूं पर मुझे लगा कि शायद यह बालिग लोगों को लगता है। क्योंकि मैंने कालेज के दिनों में यह टीका लगवाया था।

सवाल: हाहाहा, हां अब यह बच्चों को दिया जाने लगा है

जवाब: थैक्यू सर

सवाल: आपकी अध्यापन की हॉबी है, क्या इसके बारे में कुछ बता सकती हैं

जवाब: सर मेरा बचपन से ही टीचिंग से लगाव है। मैं अपने कॉलोनी के बच्चों को पढ़ाती आई हूं। मैं अपने घर की नौकरानी के बच्चों को भी पढ़ाती हूं।

सवाल: एक अच्छे टीचर में क्या क्वालिटी होनी चाहिए

जवाब: सर, एक अच्छे टीचर को अपने स्टूडेंट को हर टापिक्स अच्छे समझाना चाहिए। एक अच्छा टीचर वह होता है जो अपने स्टूडेंट को हमेशा अच्छा करने के लिए प्रेरित करे। वह दोस्त, मार्गदर्शक और दार्शनिक मिजाज का हो( मगर इंटरव्यूवर संतुष्ट नहीं हुए)

सवाल: मान लीजिए आप क्लास में पढ़ा रहीं हैं, कैसे पता करेंगी कि जो आप पढ़ा रहीं हैं छात्र उसे फालो कर रहे हैं

जवाब: सर सबसे पहले मैं क्लास के बच्चों की मेच्योरिटी लेवल पता करूंगी। इसके बाद उसी अनुरूप स्पीड से उन्हें पढ़ाना शुरू करेंगी। ताकि सभी बच्चे समान रूप से समझ सकें। बच्चों को व्यावहारिक उदाहरण देकर चीजें समझाने का प्रयास करूंगी। जो बच्चे कमजोर रहेंगे उनको पढ़ाने में अतिरिक्त समय दूंगी।

सवाल: आपकी टीचिंग हॉबी है। क्या शिक्षा से जुड़ी कुछ योजनाएं बता सकतीं हैं

जवाब: सर्व शिक्षा अभियान, माध्यमिक शिक्षा अभियान, एमडीएम, कस्तूरबा गांधी विद्यालय, स्कालरशिप स्कीम।

सवाल: शुभ्रा आप कई स्टेट में रही हो, किस स्टेट में सबसे ज्यादा रही

जवाब: जी मैं 16 साल झारखंड में रही और 12 साल यूपी में तथा दो साल आंध्र प्रदेश में रही

सवाल: आप आइआइटी रुड़की की स्टूडेंट रही हो, क्या इसके इतिहास के बारे में बता सकती हो

जवाब: आइआइटी रुड़की शुरुआती समय में थांपसन कालेज आफ सिविल इंजीनिय¨रग के रूप में जाना जाता था। तत्कालीन आगरा प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर थांपसन के नाम पर इसका नामकरण हुआ था। यह 1847 में बना। दरअसल अंग्रेजों ने हरिद्वार से पश्चिमी यूपी तक की जमीन की सिंचाई के लिए कैनाल बनाने की सोची। इसके लिए सिविल इंजीनियर्स की जरूरत थी। इसके बाद इस संस्थान की नींव पड़ी। स्वतंत्रता के बाद यह यूनिवर्सिटी आफ रुड़की हुआ फिर यूपी से उत्तराखंड के अलग होने पर आइआइटी रुड़की का नामकरण हुआ।

सवाल: क्या आप भारतीय संविधान की स्वतंत्र संस्थाओं के नाम बता सकती हैं

जवाब: सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, निर्वाचन आयोग, कैग, संघ लोग सेवा आयोग

सवाल: आप यूपी से हो, बुंदेलखंड के जिलों के नाम बताइए

जवाब: सर, झांसी, महोबा और बांदा। ये तीन ही मुझे याद हैं

सवाल: क्या हमीरपुर का नाम जानती हो

जवाब: हां सर, यह भी बुंदेलखंड में आता है।

सवाल: उत्तराखंड के अलग होने के बाद उत्तर प्रदेश का अधिकांश जंगली क्षेत्र वहां चला गया। आप यूपी को कैसे वनाच्छादित कर सकती हैं

जवाब: हम उन जमीनों को चिह्नित करेंगे जहां पर खेती न होती हो और खाली पड़ी होंगी। इसके अलावा खेतों के किनारे पौध लगाने पर जोर दिया जाएगा। सामाजिक वानिकी को बढ़ावा देंगे।

सवाल: नहीं शुभ्रा हमें आपसे कोई नए आइडिया की जरूरत है

जवाब: (दो मिनट सोचने के बाद) सर एक नया आइडिया है। जैसे अगर कोई पौधे लगाए और उसका संरक्षण करे तो सरकारी योजनाओं में उसे सब्सिडी मिले। अन्य तरीके से प्रोत्साहित किया जाए।

(ओके शुभ्रा गुड, अब आप जा सकती हो, यह कहकर मुख्य साक्षात्कारकार्ता ने इंटरव्यू पूरा होने की बात कही)

---------------

शुभ्रा का प्रोफाइल

नाम-शुभ्रा सक्सेना

यूपीएससी टॉपर-2009

कार्यकाल:2010 में फैजाबाद में ट्रेनी आइएएस

2011 में बुलंदशहर में ट्रेनी आइएएस फिर मेरठ में सीडीओ

2013-डीएम श्रावस्ती और रामपुर

जुलाई 2014-डीएम शाहजहांपुर

पति-शशांक गुप्ता

बेटी-शायना( दो साल)

पिता-अशोक चंद्रा

माता-कामना चंद्रा

निवासी-बरेली में पुराना शहर

बीटेक-आइआइटी रुड़की से 2002 में


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.