पौधों और जीवों की तैयार होगी कुंडली
जागरण संवाददाता, बरेली : कभी आपने सोचा है कि आपके शहर या गांव में कितनी प्रजातियों के पेड़ या पशु-पक्
जागरण संवाददाता, बरेली : कभी आपने सोचा है कि आपके शहर या गांव में कितनी प्रजातियों के पेड़ या पशु-पक्षी होंगे। तालाब में रहने वाली मछलियों या कीट-पतंगों में कितनी विविधता है? किस पौधे की किस क्षेत्र में क्या मान्यता है और उसके क्या गुण हैं, संबंधित क्षेत्र के निवासियों के अलावा किसी अन्य के लिए यह पता लगाना मुश्किल होता था लेकिन अब इस जैव विविधता से हर कोई वाकिफ हो सकेगा। प्रकृति कितने रूपों में उनके जीवन से जुड़ी है, शासन से लेकर उस क्षेत्र के लोग भी जान सकेंगे। उत्तर प्रदेश जैव विविधता बोर्ड इसके लिए प्रत्येक जिले से कम से कम एक गांव का जैव विविधता का डाटाबेस तैयार कराने जा रहा है। न्यायपंचायत स्तर पर एक जन-जैव विविधता पंजिका तैयार कराई जाएगी जिसमें उस गांव की जैव विविधता दर्ज होगी। पंजिका की एक प्रति न्यायपंचायत स्तर पर, एक जैव विविधता बोर्ड और एक पंजिका वन विभाग के पास रहेगी। इस पंजिका में जितनी भी चीजें दर्ज होंगी, वह उस गांव की अधिकृत रूप से प्राकृतिक संपदा मानी जाएगी।
गांव मुढि़या का हुआ चयन
राष्ट्रीय जैव विविधता बोर्ड के निर्देश हैं कि पूरे देश के गांवों का न्यायपंचायत स्तर पर जन, जैव विविधता पंजिका तैयार की जाए, लेकिन अभी केवल एक जिले से एक ही गांव मुड़िया का चयन किया गया है। इस पंजिका में गांव में किस प्रजाति के पौधे हैं, जीव-जंतु, फसलें, जलीय और भूमि के अंदर पाए जाने वाले जीव भी इसमें शामिल किए जाएंगे। अगर किसी पौधे या जीव की उस क्षेत्र के लिए खास महत्व या मान्यता है तो उसको अलग दर्शाया जाएगा ताकि उसका प्रयोग किया जा सके।
होगा पेटेंट
भारत विश्व की 12 जैव विविधता वृहद केंद्र में शामिल है। हर क्षेत्र में कुछ खास पौधे हैं जिनके अपने खास गुण हैं और मान्यता भी है। डाटाबेस तैयार करने में जुटे बरेली कॉलेज के बॉटनी विभाग के शिक्षक आलोक खरे कहते हैं कि कई बार हमारे देश की प्राकृति संपदा पर दूसरे देश अपनी मुहर लगाने लगते हैं। उन्होंने हल्दी का उदाहरण देकर बताया कि 1991 में जर्मनी ने दावा ठोंका कि हल्दी उसकी खोज है और उसका पेटेंट उनको मिलना चाहिए। बाद में काउंसिल ऑफ साइंसटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च ने 1996 में एक रिसर्च पेपर प्रस्तुत किया जिससे सिद्ध हुआ कि हल्दी की खोज सबसे पहले भारत में हुई। बासमती चावल के लिए भी अमेरिका अपना दावा ठोक चुका है। अगर हमारे पास लीगल दस्तावेज होंगे तो उसका पेटेंट कराने में दिक्कत नहीं होगी। इसका शोध छात्रों को भी लाभ मिल सकेगा।
'जैव विविधता बोर्ड की ओर से जिले से एक गांव का जन जैव विविधता पंजिका तैयार कराई जाएगी। बरेली में गांव मुड़िया इसके लिए सलेक्ट किया गया है। इसमें पेड़ पौधों से लेकर जीवों का पूरा डाटा तैयार किया जाना है। हमारी टीम इसमें जुट गई है।'
-डॉ. आलोक खरे, शिक्षक बरेली कॉलेज बॉटनी विभाग