अधिकारों को मिलेगी किताब की ताकत
जागरण संवाददाता, बरेली : संविधान की नजर में हर कोई बराबर है। हर किसी को मूल अधिकार प्राप्त हैं। अपनी
जागरण संवाददाता, बरेली : संविधान की नजर में हर कोई बराबर है। हर किसी को मूल अधिकार प्राप्त हैं। अपनी बात कहने का अधिकार मिला। आरटीआइ कानून की शक्ति भी हर किसी के पास है, लेकिन सबकुछ होने के बावजूद आम आदमी भ्रष्टाचार के बीच पिसने पर मजबूर है। कारण, अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना। आम जनता को आरटीआइ कानून से रूबरू कराने की पहल की है एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय के विधि विभाग के हेड डॉ. अमित सिंह और बरेली कॉलेज के विधि शिक्षक डॉ. डीके सिंह ने। उन्होंने संयुक्त प्रयास से 'भारत में सूचना का अधिकार' किताब लिखी है जिसमें बेहद सरल अंदाज में बताया कि कैसे आरटीआइ कानून का प्रयोग करें और कानून से क्या शक्तियां मिली है। अब तक यह किताब केवल कॉलेजों में नहीं नजर आती थी, लेकिन अब यह किताब आम जनता के हाथों में नजर आएगी।
मूल अधिकार का अंग है आरटीआइ
संविधान के अनुच्छेद-19 में देश के हर नागरिक को अभिव्यक्ति की आजादी मिली है। बेबाकी से अपनी बात कहने को उसको रोका नहीं जा सकता। मूल अधिकार के साथ इसी अनुच्छेद 19-1(ए) के तहत देश के हर नागरिक को जानने का अधिकार भी मिला है जो आज हमारे बीच सूचना का अधिकार कानून के रूप में मौजूद है। देश में संविधान लागू हुए 64 साल गुजर गए, आरटीआइ लागू हुए 9 साल का वक्त बीत गया लेकिन आम आदमी आज भी अपने मूल अधिकारों के साथ आरटीआइ जैसे कानून से भी दूर है।
किताब में क्या है खास
आरटीआइ के तहत अक्सर एक बार में जानकारी नहीं मिलती। आवेदक कई बार निराश होकर सूचना मिलने की उम्मीद छोड़ देता है। राइट टू इंफॉर्मेशन इन इंडिया में प्रभावी उदाहरणों के साथ समझाया गया है कि किस विभाग की जानकारी मिल सकती है और किसकी नहीं। अगर जानकारी नहीं मिलती है तो निर्धारित समय के बाद आवेदक क्या करे।
क्या कहते हैं लेखक
डॉ. अमित सिंह और डॉ. डीके सिंह का कहना है कि भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति को अपने मूल अधिकारों और आरटीआइ जैसे कानूनों के बारे में पता होना चाहिए। बड़े-बड़े खुलासे आरटीआइ के तहत एक आवेदन से ही हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि किताब लिखने का उद्देश्य भी यही था कि लोग आरटीआइ कानून के बारे में सीधी भाषा में समझ सकें।