40 साल से नहीं गूंजा पटाखों का शोर
जागरण संवाददाता, बरेली : एक तरफ तो लोग दीपावली के पावन त्योहार को केवल पटाखों की गूंज के साथ ही मनात
जागरण संवाददाता, बरेली : एक तरफ तो लोग दीपावली के पावन त्योहार को केवल पटाखों की गूंज के साथ ही मनाते हैं। दीयों से अधिक पटाखों को महत्व देते हैं, लेकिन समाज में आज भी ऐसे लोग हैं जो केवल दीयों से ही अपने घर को रौशन कर इस त्योहार को मनाते हैं। जी हां, नेकपुर के जुगल किशोर ने पिछले चालीस साल से पटाखे नहीं जलाए। दिवाली को वह बहुत शालीनता से खुद तो मनाते ही हैं साथ दूसरों को भी ऐसा करने की सीख देते हैं।
जुगल किशोर बचपन से ही पटाखों से दूर रहे। धमाके की आवाज उनको पसंद नहीं। दिवाली आती है वह दीयों को जलाना पसंद करते हैं। मोमबत्ती जलाकर अपने घर को रौशन करते। यह सिलसिला आज भी जारी है। ऐसा नहीं है वह आर्थिक रूप से कमजोर हैं, वह एक पैट्रोल पंप पर बतौर प्रबंधक नौकरी करते हैं और आर्थिक रूप से संपन्न हैं। वह पटाखे जलाने को दोहरा नुकसान मानते हैं। एक धन का नुकसान और दूसरा पर्यावरण का। हालांकि बच्चों को बहुत कम आवाज करने पटाखे लाकर जरूर देते हैं, लेकिन वो भी केवल नाममात्र। वह अपने मुहल्ले के लोगों को केवल दीये जलाने के लिए ही प्रेरित करते हैं। हर साल उनको कामयाबी भी मिली है। उनके मुहल्ले के कई लोगों ने पटाखे जलाना बहुत कम कर दिया है। जुगल किशोर कहते हैं जब तक हम अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे तब तक कोई बदलाव नहीं होने वाला।