धीरे-धीरे नष्ट हो रहे प्रकृति के उपहार
जागरण संवाददाता, बरेली : जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध प्रकृति के दोहन के चलते प्रकृति का उपहार कहे जाने वाले अत्याधिक लाभकारी पौधे जिले की भूमि से नष्ट होते हैं जा रहे हैं। इसमें कुछ ऐसे पौधे हैं जो पर्यावरण संतुलन के लिए बहुत लाभकारी हैं। बरेली कॉलेज के बॉटनी विभाग द्वारा किए गए रिसर्च में तथ्य सामने आए हैं जिसमें पिछले कुछ समय में ही दर्जन भर से अधिक पौधे विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए। अगर उनको संरक्षण नहीं मिला तो उनके नाम केवल किताबों में ही पढ़ने को मिलेंगे।
बरेली कॉलेज के बॉटनी विभाग के डॉ. आलोक कुमार खरे ने बताया कि कंपनी गार्डन में ब्रिंगटोनिया नाम का पौधा है जो पिछले कुछ समय से नष्ट होने की कगार पर बढ़ रहा है। इसी प्रकार टेलीबुइया और साइरस पौधा पर रिसर्च किया और पाया कि जलवायु परिवर्तन का असर इन पौधों पर बहुत तेजी से हो रहा है। यही आलम रहा तो यह पूरी तरह से हमारी धरती से नष्ट हो जाएंगे। उनके अनुसार एक साल में कैंपस से ही कई पौधे नष्ट हो गए।
1920 से अब तक गायब हो गए 72 पौधे
डॉ. आलोक के अनुसार ब्रिटिश शासन काल में रुहेलखंड में जेएफ डुथी नाम के वैज्ञानिक ने एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने 152 पौधों को जिक्र किया। 1922 में वो किताब प्रकाशित हुई। उस किताब को लेकर जब रिसर्च किया गया तो रुहेलखंड में 72 पौधे नहीं मिले। यानि यह पौधे रुहेलखंड की धरती से विलुप्त हो गए हैं। इसमें सीता आशोक, पृथ्वीपाल, तमाल, रेबड़, खैर, डायो स्पाइरस, आबनूस, शीकाकाई, रीढ़ा, पुत्रनजीवा, पारसपीपल, ग्लाई कोसमिम समेत 72 पौधे गायब हो चुके हैं। उनका मानना है कि यह पौधे जलवायु परिवर्तन के चलते ही खत्म हुए और अब दर्जन भर पौधे नष्ट होने की कगार पर हैं।
विदेशी पौधों की हो गई भरमार
रिसर्च के लिए विदेशों से पौधों ने यहां अपने पैर पसार लिए। वह यहां के वातावरण के लिए अनुकूल नहीं लेकिन फिर वह यह पनप गए। यूके लिप्टिस और पॉपलर इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। इनके कारण ही जलवायु परिवर्तन तेजी से हुए और रिजल्ट हमारे सामने हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन का असर नदियों पर भी पड़ा है। बरेली कॉलेज के डॉ. वीके गुप्ता के अनुसार नदियों के रिसर्च में सामने आया है जो पानी में और उसमें रहने वाले जीवों में परिवर्तन आए है उसमें पौधों को भी अहम भूमिका है क्योंकि जलवायु परिवर्तन में उनकी भूमिका सबसे अधिक होती है।