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प्रापर्टी डीलिंग में फंसी बाराबंकी की सियासत

By Edited By: Published: Thu, 17 Apr 2014 12:50 AM (IST)Updated: Thu, 17 Apr 2014 12:50 AM (IST)
प्रापर्टी डीलिंग में फंसी बाराबंकी की सियासत

बाराबंकी: राजधानी के करीब के क्षेत्रों में एक नया बाराबंकी बस रहा है। इसे बसाने और उजाड़ने का कारोबार लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा बन गया है। लखनऊ विकास प्राधिकरण का दायरा बढ़े या फिर बाराबंकी विकास प्राधिकरण का गठन हो इसको लेकर सियासी राय एक नहीं है। जितने क्षेत्र में यह कारोबार बढ़ा है उस क्षेत्र में सात लाख सात हजार 882 मतदाता हैं। बाराबंकी संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। रियल स्टेट कारोबार से प्रभावित यह इलाके तीन विधानसभा क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। इन्हीं क्षेत्रों में लखनऊ विकास प्राधिकरण का दायरा बढ़ाने या फिर बाराबंकी विकास प्राधिकरण का गठन करने का प्रस्ताव है। रियल स्टेट के कारोबारी नहीं चाहते कि प्राधिकरण का गठन हो। लिहाजा इसका हौवा लोकसभा चुनाव में भी खड़ा किया जा रहा है। प्राधिकरण गठित न होने से अब तक सरकार को हजारों करोड़ के राजस्व का चूना लग चुका है। इन्हें नियंत्रित करने का प्रभार प्राधिकरण के अभाव में विनियमित क्षेत्र, जिला पंचायत व नगर पालिका कर रही है। ये तीनों एजेंसियां मिलकर भी इनके अवैध कारोबार पर लगाम नहीं लगा पा रही हैं। रियल स्टेट के कारोबारी चाहते हैं कि यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहे। इन एजेंसियों का विकास शुल्क प्राधिकरण के विकास शुल्क से काफी कम है जिसका लाभ रियल स्टेट कारोबार को मिल रहा है। प्राधिकरण न होने से इन्हें कारोबार में भी प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ रहा है। यह तो हुआ लाभ का पक्ष। चुनाव के दौर में इसकी बात इसलिए भी जरूर है क्योंकि रियल स्टेट के कारोबार में सिर्फ कारोबारी ही शामिल नहीं हैं बल्कि सियासत से जुड़े लोगों ने इसमें खासा निवेश कर रखा है। इनमें सत्तारूढ़ दल के बड़े नेता शामिल हैं तो विपक्ष के भी ऐसे बड़े नेताओं की कमी नहीं है जिन्होंने रियल स्टेट के कारोबार में अपने पांव फैला रखे हैं। इनके नाम भी चर्चा में हैं। सिर्फ नेता ही क्यों? आइएएस, आइपीएस, पीसीएस, अधिकारी हों या फिर राजस्व महकमे के अदना कर्मचारी, सभी की रुचि प्रापर्टी डीलिंग के धंधे में है। किसी ने अपने परिजनों के नाम से बड़े-बड़े प्लाट ले रखे हैं तो किसी ने अपरोक्ष रूप से निवेश कर रखा है। कुछ लोगों ने संस्था बनाकर इनके नाम जमीनें करा ली हैं। लोकसभा की दुंदुभी बज गई है तो इसमें रियल स्टेट के कारोबारी भी पीछे नहीं हैं। सभी अपने पसंदीदा उम्मीदवार पर दांव लगा रहे हैं। लाभ कितना होगा? यह तो समय बताएगा फिलहाल बाराबंकी की सियासत प्रापर्टी डीलिंग में सीधे तौर पर फंसी दिखाई दे रही है।


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