बिजली कटौती बना रही चिड़चिड़ा,जनता बेहाल
बांदा, जागरण संवाददाता : अंधाधुंध बिजली कटौती को लेकर लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। भीषण उमस वाल
बांदा, जागरण संवाददाता : अंधाधुंध बिजली कटौती को लेकर लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। भीषण उमस वाली गर्मी में लोगों की जख्म पर बिजली नमक छिड़कने का काम कर रही है। लोग बीमार हो रहे हैं और स्वभाव में चिड़चिड़ापन बढ़ रहा है लेकिन बिजली विभाग ने जनमानस की समस्या से पूरी तरह से मुंह फेर रखा है। मंडल मुख्यालय का हाल यह है कि ना कोई रोस्टर है और ना ही कोई नियम बचा है। किसी भी वक्त अंधाधुंध अघोषित कटौती की जा रही है। ऐसे में लोगों को खासी दिक्कतों का सामना कर पड़ रहा है। बारिश के मौसम में उमस से लोग बेहाल हैं। लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। लोग बिजली ना होने पर और ज्यादा परेशान हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर बिजली कटौती के संबंध में जानकारी को जब विभाग के अधिकारियों को फोन किया जाता है तो वे फोन नहीं उठाते हैं। इससे लोगों को और ज्यादा समस्या होती है।
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क्या कहते हैं लोग
- बिजली कटौती से सबसे ज्यादा ग्रहणियों को परेशान हो रही है। बिजली ना होने से घरों का कामकाज तो प्रभावित होता ही है। साथ ही पूरी दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित होती है। कटौती का एक समय होना चाहिए। ताकि लोग उसी हिसाब से अपना कामकाज तय कर सकें। - लक्ष्मी किशोर त्रिपाठी, प्रोफेसर, महिला कालेज
- बिजली की समस्या हमेशा से ही परेशान करती है। इससे ग्रहणियों को ज्यादा दिक्कत होती है क्योंकि बिजली जाने से सारे काम रुक जाते हैं। सबसे बुरा असर पेयजल व्यवस्था पर पड़ता है। बिजनी ना होने से पानी भी घरों में नहीं आता है। इससे पूरी व्यवस्था ही चौपट हो जाती है। बिजली कटौती का समय निश्चित होना चाहिए। - जाग्रति वर्मा, ग्रहणी
- बिजली की समस्या बेहद गंभीर बन चुकी है। इससे हर वर्ग परेशान है। व्यापारी बुरी तरह से आहत हैं। सरकार कहती है कि चौबीस घंटे बिजली दी जा रही है। किसको दी जा रही यह किसी को पता नहीं है। जनता, व्यापारी और हर वर्ग के लोग बुरी तरह से परेशान हैं। क्या करें कुछ समझ नहीं आता है। - प्रद्युम दुबे, लालू, मंडल अध्यक्ष, पेट्रोलपंप एसोसिएशन
- बिजली की समस्या से सभी परेशान हैं। अघोषित कटौती बुरी तरह से लोगों को रुला रही है। छात्र-छात्राओं की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। लोगों को काम नहीं करते बन रहा है। क्या किया जाए, किससे कहा जाए। कुछ समझ नहीं आ रहा है। अधिकारी जानकर भी अंजान बने हुए हैं। कम से कम जनप्रतिनिधियों को इस दिशा में कुछ बोलना चाहिए। - रमेश चौरसिया, नागरिक