बदल गया चुनाव प्रचार का तरीका
अतर्रा, संवाद सहयोगी : चुनाव बड़ों में रौनक, रोजगार और धन लाते थे और छोटे बच्चे रंग-बिरंगे बिल्ले सी
अतर्रा, संवाद सहयोगी : चुनाव बड़ों में रौनक, रोजगार और धन लाते थे और छोटे बच्चे रंग-बिरंगे बिल्ले सीने में लगाए घूमते थे। समय बदला तो चुनाव आयोग की धमक ने बड़ों के लिए सब कुछ छिपकर करने की मजबूरी बना दी। अब बच्चों के लिए बिल्ले भी दुर्लभ हो गए। गांव प्रचार को पहुंच रहे हर दल के लोगों से बच्चों का एक ही सवाल होता है कि बिल्ले लाए हैं। न का उत्तर सुनकर अपने घरों को मायूस हो चले जाते हैं। पहले के चुनाव में कोई लोहे, प्लास्टिक या कपड़े के बिल्ले बनवाते थे अब तो केवल कुछ ही लोग कागज के बिल्ले बनवाकर वोट मांगते हैं। चुनाव चिन्ह पहचान कराने का तरीका अब केवल होर्डिंग, पर्चों में सिमट गया है। पहले बच्चों की एक छाती पर कई-कई बिल्ले लटकना शान की प्रतीक होते थे। अब सबकुछ बदल गया है। प्रचार का तरीका बदलने से बच्चे भी केवल गाड़ियों का काफिला गिनकर उनसे उठने वाले गुबार को देखते और आंख मलते हुए किनारे हो लेते हैं।