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ऐसे होती रही कटान तो मिट जाएगा अल्लीपुर का वजूद

बलरामपुर : राप्ती नदी के तटवर्ती गाव अल्लीपुर के निवासी विगत तीन वर्षो से नदी की कटान से सैकड़ों एकड़

By Edited By: Published: Thu, 05 May 2016 11:42 PM (IST)Updated: Thu, 05 May 2016 11:42 PM (IST)
ऐसे होती रही कटान तो मिट जाएगा अल्लीपुर का वजूद

बलरामपुर : राप्ती नदी के तटवर्ती गाव अल्लीपुर के निवासी विगत तीन वर्षो से नदी की कटान से सैकड़ों एकड़ खेत तथा बागों से महरूम हो गए हैं। गांव को कटान से बचाने के लिए बना तटबंध तीन साल में कटते-कटते ढाई किलोमीटर की लंबाई की पटान का वजूद मिटा चुका है। मौजूदा समय में पानी कम है, लेकिन रह-रहकर कटान जारी है। तीन साल से तटबंध को पूरा कराने की ग्रामीणों की मांग बेअसर है। पिछले साल लगभग दो दर्जन घरों को नदी की धारा में मिलाने के लिए बढ़ रही राप्ती को ग्रामीणों ने बास, पेड़, बालू भरी बोरियों आदि से रोक लिया था, लेकिन इस बार अगर नदी में बाढ़ आई तो घर, खेत तथा बाग बचाना मुश्किल साबित होगा।

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ग्राम प्रधान बालक राम वर्मा का कहना है कि तटबंध को पूरा कराने के लिए तीन वषरें में तहसील दिवस तथा डीएम के जनता दर्शन में दर्जनों प्रार्थना पत्र दिया गया लेकिन केवल आश्वासन ही दिया जा रहा है।

ग्रामीण लुद्दुर बताते हैं कि 2013 में नदी में आई बाढ़ के बाद केवल दो सौ मीटर का तटबंध क्षतिग्रस्त हुआ था। उसी समय मामले की जानकारी एसडीएम को दी गई। क्षेत्रीय लेखपाल ने भी अपनी रिपोर्ट बनाकर भेजी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

पृथीपाल बताते हैं कि 2013 के बाद से लगातार तटबंध कट कर नदी में समाता जा रहा है और तटबंध के गैप से पानी सीधे गाव के खेतों को काट-काट कर नदी में मिलाता जा रहा है।

अहमद का कहना है कि तटबंध को पूरा कराने से ही गाव की खेती तथा दो दर्जन घरों को कटने से बचाया जा सकता है। ग्रामीण मनरेगा के तहत तटबंध को पूरा करवाने के लिए अपनी सेवाएं देने के लिए तैयार हैं, लेकिन कोई विभाग इस काम को करवाने के लिए आगे नहीं आ रहा है।

सुरेश बताते हैं कि बाढ़ और बरसात में संबंधित विभाग काम कराने में असमर्थता व्यक्त करता रहा है, लेकिन अब जब नदी का जल स्तर काफी कम हो गया है। पटान के लिए सूखी मिट्टी भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है तो विभाग को निर्माण कार्य करने में क्या परेशानी है।

पतिराम का कहना है कि तटबंध बनने के पहले भी ग्रामीणों की सैकड़ों बीघा खेती नदी ने काट कर उस पार पहुंचा दिया और अब तटबंध बन जाने के बाद भी किसान इसी समस्या से जूझ रहे हैं। सरकार तथा जन प्रतिनिधियों को इस पर संवेदनशीलता से विचार करने की जरूरत है।

आज्ञा राम ने बताया कि अब तक सिर्फ उनकी ही तीन एकड़ से ज्यादा की खेती नदी में जा चुकी है और अगर कटान की यही स्थिति रही तो उन्हें भूमिहीन बन कर रहना पड़ेगा। तटबंध के मरम्मत की जवाबदेही सिद्धार्थनगर जनपद में स्थित कार्यालय है। इसलिए न तो स्थानीय अधिकारी इस काम के लिए निर्गत धन की जानकारी रखते हैं न ही यहा के अधीकारियों के आदेश को ही माना जाता है। तीन साल से यही स्थिति बनी हुई है।

इस्लाम का कहना है कि गांव में नदी के कटान के बाद दो दर्जन लोगों के सिर से छत का साया भी उठ जाएगा। खेती गंवा चुके भूमिहीन मजदूरों से घर छिन जाने के बाद ऐसे लोगों को बाल-बच्चों के साथ दर-दर भटकने को विवश होने तथा फाकाकशी की नौबत आ जाएगी। जिम्मेदारों को इस मसले पर गंभीर होकर तटबंध पूरा कराने के लिए आगे आने की जरूरत है।

-क्या कहते हैं जिम्मेदार

तटबंध को पूरा कराने के सवाल पर ड्रेनेज खंड सिद्धार्थ नगर के अधिशासी अभियंता यूके सिंह का कहना है कि इस काम के लिए कई लाख रूपयों की जरूरत है, लेकिन ड्रेनेज खंड को मरम्मत के नाम पर दस हजार रुपये भी आवंटित नहीं होते तो इतने बड़े काम के लिए धन की व्यवस्था कैसे हो। फिलहाल उन्होनें कटे तटबंध केलिए कोई काम कराने में असमर्थता जताई।


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